राहगीर : हिंदी कविता-संगीत का रॉकस्टार
भूपेंद्र
24 जुलाई 2025

बीसवीं सदी के तीसरे और चौथे दशक में जब अमेरिका महामंदी और डस्ट बॉउल (धूलभरी आँधी) से जूझ रहा था, उस समय होबो (घुमक्कड़ मज़दूर)—रोज़गार की खोज में मालगाड़ियों में सवार होकर मुफ़्त में यात्रा करते थे। यात्राओं में भद्दे चुटकुलों के बीच वूडी गथरी का गिटार बजता था। उनके गीतों में मेहनतकश मज़दूरों, प्रवासियों के हक़ की बात और सामाजिक अन्याय के बयान होते थे। यह अमेरिकी संगीत का बहुत बड़ा दौर था, जिसने आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित किया और एक नई दिशा दिखाई। उस दौर में पीट सीगर, बॉब डिलन, जॉन बाएज, फ़िल ऑक्स जैसे कई कलाकारों सामने आए और उन्होंने सिविल राइट्स से लेकर पर्यावरण-जागरूकता तक को अपने गीतों का हिस्सा बनाया।
भारत में सामाजिक समता की बात कहने वाले स्वतंत्र गायक बहुत कम थे/हैं या शायद भाषाई विविधता के कारण उनके संगीत की पहुँच कभी पूरी तरह से संपूर्ण भारत तक नहीं पहुँची।
एक ऐसे परिदृश्य में बीती सदी के अंतिम दशक में राजस्थान के सीकर ज़िले के पास स्थित छोटे से क़स्बे खंडेला में राहगीर का जन्म होता है। एक मध्यवर्गीय परिवार में पले-बढ़े राहगीर की प्राथमिक शिक्षा भी यहीं होती है। बचपन में ही राहगीर कहानियों और कविताओं की दुनिया से परिचित होकर, पढ़ने-लिखने का गहरा शौक़ लगा लेते हैं। बाल पत्रिकाएँ, पाठ्यक्रम की किताबों जो भी उन्हें उपलब्ध होता, वह सब पढ़ डालते। यही आदत आगे चलकर उनके भीतर रचनात्मकता के बीज बोती है।
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद राहगीर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने निकल जाते हैं, कॉलेज के बाद कॉर्पोरेट में नौकरी के दिन भी शुरू होते हैं। नौकरी के वक़्त हिंदी और वैश्विक कविता के साथ-साथ उनका तआ‘रुफ़ उसी अमेरिकी संगीत के बड़े दौर से होता है; अस्ल में उनके भीतर पल रही रचनात्मकता, संवेदनशीलता और गीतों की तलाश ही उन्हें कहीं न कहीं अमेरिकी फ़ोक-परंपरा में निखरे कलाकारों की तरह, अपनी भी एक राह बनाने के लिए प्रेरित करती है। इसी सिलसिले में वह अभी तक 200 से ज़्यादा गीत-कविताएँ लिख चुके हैं।
नौकरी के दिनों में लिखे उनके एक गीत की पंक्ति है :
तन खा गई ये तनखा,
ना छोड़ा मालिक मन का
मन में अपनी बात कहने की हूक उन्हें नौकरी छोड़ देश भ्रमण पर मज़बूर कर देती है। यहीं से शुरू होता है राहगीर का कल्ट। शुरूआती दौर में घूम-घूमकर कैफ़े से लेकर ढाबों तक, कभी लोगों के लिए तो कभी खाने के लिए—राहगीर ने शहरों-गाँवों, जयपुर, दिल्ली, पटना, लुधियाना, चंडीगढ़, अमृतसर, बंबई, शिमला, मनाली, कुल्लू, चंबा, सीकर, झुंझुनू, कोटा, चूरू, काशी, कोच्चि, गोवा, राँची, कलकत्ता, इंदौर, चेन्नई, गुवाहाटी, आईज़ोल, मदुरई, सिरसा, सूरत और तिरुचिपल्ली.., जहाँ गए, वहाँ गीत गाए। ग़ुर्बत के दिनों में भी उनका गिटार बजता रहा। कुछ साल बाद इस क्रम में ही एक रोज़ उनकी एक क्लिप वायरल हुई और उनका संगीत संसार के सामने आया। इसके बाद राहगीर उस गाड़ी में चढ़ गए, जो उन्हें उनके ख़्वाबों को जीवन की यात्रा पर लेकर चल रही है।
राहगीर सरल हैं, लेकिन साधारण बिल्कुल नहीं। राहगीर इस पीढ़ी की कविता का शिल्प जानते हुए सरल हैं। वह मुख्यधारा की कविता के शिल्प से परिचित हैं। उनका मानना है कि बात को ऐसे क़तई न लिखा जाए, जिसे केवल पढ़ा-लिखा ही समझ पाए। उनके दो कविता-संग्रह (‘कैसा कुत्ता है’, ‘समझ गए या समझाऊँ’) और एक उपन्यास (‘आहिल’) हिन्द युग्म प्रकाशन से आ चुके हैं। इन किताबों का बेस्टसेलर होना इस बात का प्रमाण है कि उन्हें सुनने के साथ-साथ बहुत पढ़ा भी जा रहा है।
राहगीर का कवि उन सबके लिए भी हैं, जो साहित्यिक दुनिया से एक दूरी पर होते हैं—यानी जो मूलत: पाठक हैं, आस्वादक हैं। रमाशंकर यादव विद्रोही, धूमिल, पाश को अपनी प्रेरणा बताने वाले राहगीर के गीत सीधे और बहुत आसानी से आपके ज़ेहन पर ठक-ठक करते हैं। वह आपको उन्हीं बातों से विचलित करते हैं, जिन समस्याओं-मुश्किलों को आप—बचने के लिए—आँख बंद करके रोज़ लाँघते हैं।
आज उनके गीतों की लोकप्रियता इतनी है कि हिंदुस्तान के लगभग सभी साहित्यिक, कला उत्सव के मंचों पर दुनिया भर के प्रमुख शहरों में वह अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। उनके गीत सुनकर यह लगता है (और जिसकी पूरी संभावना भी है) कि भारतीय जनमानस भविष्य में वूडी गथरी की संगीत-क्रांति की तरह का कुछ घटता हुआ ज़रूर देखेगा।
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सुपरिचित गीतकार-गायक राहगीर इस बार के ‘हिन्दवी उत्सव’ में गीत-संगीत प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित हैं। ‘हिन्दवी उत्सव’ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहाँ देखिए : हिन्दवी उत्सव-2025
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