उपेन्द्रनाथ अश्क के संस्मरण
आई लाईक यू दो आई हेट यू: मंटो
मंटो मेरा दुश्मन समझा जाता था। हममें काफ़ी नोक-झोंक रहती थी और इसमें कोई संदेह नहीं कि जब तक हम साथ-साथ रहे, हमने एक-दूसरे को बड़ी कड़ी चोटें पहुँचाई। ‘कुतुब पब्लिशर्स बंबई’ ने एक पुस्तक माला निकाली थी—‘नए अदब के मेमार, उसमें उर्दू के लेखकों ने एक-दूसरे
बादलों से झलकता इंद्रधनुष-यशपाल
यशपाल से मेरा परिचय न घना है न पुराना उस इंद्रधनुष के परिचय—सा है, जिसका एक सिरा नीचे के बादलों में गुम हो और दूसरा आकाश के विस्तार में खो गया हो और दो-चार बार ही जिसकी झलक मुझे मिली हो। यशपाल के अतीत को मैं अधिक नहीं जानता, केवल इतना सुना है कि स्व०
क्या इमारत ग़मों ने ढाई है: निराला
पहले-पहल निरालाजी का नाम मैंने अपनी बी० ए० की पाठ्य-पुस्तक में पढ़ा। मैं उन दिनों बड़े ज़ोरों से उर्दू में ग़ज़लें लिखता था। हिंदी की ओर विशेष रुचि न थी। केवल 50 नंबर की हिंदी थी और वे नंबर भी डिवीज़न में शामिल न होते थे, इसलिए छात्र निहायत बेपरवाही से
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere