उपेंद्रनाथ अश्क के डायरी
पुरानी डायरी के पन्ने-2
आकाशगामी सुंदर तन्वी के गुलाबी गाल पर आँसू का कण अहंकार के नशे में काँप उठा, वह उस साम्राज्य का स्वामी था, जहाँ देवताओं के पंख भी जलते थे। फूल के रेशमी बिछोने पर शबनम का मोती सूरज की पहली किरण के साथ जागा और उसने गर्व से अंगड़ाई ली— किरण को बुलंदी
पुरानी डायरी के पन्ने-1
महत्त्वाकांक्षा आँसू बनकर मत गिरो, बादल बनकर बरसो। बादल बनकर मत बरसो, नदी बनकर चलो। नदी बनकर मत चलो, महानद का प्रवाह धरो। महानद का प्रवाह छोड़ो, सागर का विस्तार गहो! 24 जनवरी 1931 सिर-फिरा कवि महाराज सभा में पधारे तो सारी की सारी सभा
पुरानी डायरी के पन्ने-3
स्नेह और रक्त दीवाली की ख़ुशी में धनाधीश ने अपने भवन के तारीक से तारीक कोने को दियों की रोशनी से जगमगा दिया है। उन दियों के प्रकाश में आशा की वह ज्योति है जो उसके हृदय से निराशा का अँधेरा दूर भगा रही है; एक नशा है जो उसे सरशार कर रहा है; जादू है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere