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शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

1876 - 1938 | कोलकाता, पश्चिम बंगाल

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 30

अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार करके उसकी ग़ुलामी करना ही कायरपन है।

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जब देश में कोई विशेष नियम प्रतिष्ठित होता है, तब वह एक ही दिन में नहीं, बल्कि बहुत धीरे-धीरे संपन्न हुआ करता है। उस समय वे लोग पिता नहीं होते, भाई नहीं होते, पति नहीं होते-होते हैं केवल पुरुष। जिन लोगों के संबंध में वे नियम बनाए जाते है, वे भी आत्मीया नहीं होती, बल्कि होती हैं केवल नारियाँ।

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यथार्थ प्यार करने में स्त्रियों की शक्ति और साहस पुरुष से कहीं अधिक है। वे कुछ नहीं मानतीं। पुरुष जहाँ भय विह्वल हो जाते हैं, स्त्रियाँ वहाँ स्पष्ट बातें उच्च स्वर से घोषित करने में दुविधा नहीं करतीं।

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यदि समग्र भाव से समस्त नारी जाति के दुःख-सुख और मंगल-अमंगल की तह में देखा जाए, तो पिता, भाई और पति की सारी हीनताएँ और सारी धोखेबाज़ियाँ क्षण भर में ही सूर्य के प्रकाश के समान आप से आप सामने जाती हैं।

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पति को जिस स्त्री ने हृदय से धर्म के रूप में विचारन नहीं सीखा, उसके पैरों की जंजीर चाहे हमेशा बँधी हो रहे चाहे खुल जाए और अपने सतीत्व के जहाज़ को वह चाहे जितना भी बड़ा क्यों समझती हो, परीक्षा के दलदल में पड़ने पर उसे डूबना ही पड़ेगा। वह पर्दे के अंदर भी डूबेगी और बाहर भी डूबेगी।

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पुस्तकें 9

 

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