राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तांत
जर्मनी की सैर
सत्ताइस जुलाई, 1932 ई० को मैं लंदन पहुँचा था। तबसे 14 नवंबर तक इंग्लैंड में ही रहा। वहाँ के निवास के बारे में फिर लिखूँगा। 14 नवंबर को मैं पेरिस नगरी के लिए रवाना हुआ और 26 नवंबर तक वहाँ रहा। दो व्याख्यान होने के अतिरिक्त मेरे तिब्बत से लाए चित्रपटों
ल्हासा की ओर
वह नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता है। फरी-कलिङ्पोङ् का रास्ता जब नहीं खुला था, तो नेपाल ही नहीं हिंदुस्तान की भी चीज़ें इसी रास्ते तिब्बत जाया करती थीं। यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और क़िले बने हुए हैं, जिनमें
अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा
संस्कृत से ग्रंथ को शुरू करने के लिए पाठकों को रोष नहीं होना चाहिए। आखिर हम शास्त्र लिखने जा रहें हैं, फिर शास्त्र की परिपाटी को तो मानना ही पड़ेगा। शास्त्रों में जिज्ञासा ऐसी चीज़ के लिए होनी बतलाई गई है, जोकि श्रेष्ठ तथा व्यक्ति और समाज सबके लिए परम
स्त्री घुमक्कड़
घुमक्कड़-धर्म सार्वदैशिक विश्वव्यापी धर्म है। अंत में किसी के आने की मनाही नहीं है, इसलिए यदि देश की तरुणियाँ भी घुमक्कड़ बनने की इच्छा रखें, तो यह ख़ुशी की बात है। स्त्री होने से वह साहस-हीन है, उसमें अज्ञात दिशाओं और देशों में विचरने के संकल्प का अभाव
पेरिस में
चौदह नवंबर को ग्यारह बजे लंदन से विदाई ले मैं पेरिस को रवाना हुआ। उस दिन चारों ओर कुहरा फैला हुआ था। आज मेरा टिकट द्वितीय श्रेणी का था। कितने ही मित्र स्टेशन तक पहुँचाने आए थे। आज डोवर और केलेके रास्ते जाना था। कुछ दूर चलने के बाद कुहरा कम होने लगा।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere