गुलाब राय का आलोचनात्मक लेखन
उपन्यास और नीति
वैसे तो उपन्यास और नीति का प्रश्न कला और नीति या आचार के व्यापक प्रश्न का ही अंग है, किंतु उपन्यास के संबंध में यह प्रश्न कुछ उग्र रूप धारण कर लेता है। इसका कारण यह है कि अधिकांश लोग उपन्यास को मनोरंजन की वस्तु समझ लेते हैं। उनके लिए नीति की अपेक्षा
'काव्येषु नाटकं रम्यम्'
कथ्य—रसरूप मनुष्य के हृदयगत आनंद की अभिव्यक्ति को काव्य कहते हैं। ब्रह्मानंद और काव्यानंद में केवल यही अंतर होता है कि पहला संसार निरपेक्ष और पूर्णतया आत्मगत होता है परंतु काव्य का आनंद संसार-निरपेक्ष तो नहीं होता किंतु लौकिक से इस बात में भिन्न होता
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere