देवेंद्र सत्यार्थी के निबंध
रस, लय और माधुरी
रवींद्रनाथ ठाकुर ने एक स्थान पर लिखा है—'हमारे ग्रामों का स्वरूप स्त्रियों का सा ही है। ग्रामों की रक्षा में ही हमारी जाति की रक्षा है। नगरों में कहीं अधिक प्रकृति के समीप होने के कारण जीवन-स्रोत के साथ ग्रामों का घना संबंध बना रहता है। ग्राम्य जीवन
हीर-रांझा के गीत
एक था रांझा, जो प्रेम का देवता बन गया एक थी हीर, सौंदर्य की देवी। पंजाब की धरती पर दोनों का जन्म हुआ। तब भारत में बाबर आ चुका था; घोड़ों की टापों में देश की धरती उखड़ रही थी। इतिहास का ध्यान लगा था राजनीतिक उथल-पुथल की ओर। हीर का जन्म किस तिथि को हुआ,
कविता का मूलस्रोत
आदिम युग के लोकगीतों की विवेचना करते हुए काँडवेल ने इस बात पर विशेष ज़ोर दिया था कि उस समय सामाजिक चेतना अपने प्रारंभिक काल में थी, और जिस प्रकार विकासमान समाज ने वातावरण के साथ संघर्ष करने में पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के साथ अनुकूलता स्थापित करने के
बेला फूले आधी रात
बेला आधी रात को खिलता है और चमेली को तो सवेरे का खिलना पसंद है। लोकगीत की महिमामयी वाणी ने बेला और चमेली के बीच जाने कब से सीमा-रेखा खींच रखी है—'बेला फूले आधी रात, चमेली भिनसरिया हो!' पसंद अपनी-अपनी। कोई किसी को मजबूर तो नहीं कर सकता। प्रत्येक फूल ने
माँ, लोरी सुना
'कविता' मेरी नन्हीं कन्या है। लोरियाँ सुनने का उसे बेहद शौक़ है। अब तो वह इन्हें समझने भी लगी है। लोरियों के एक-एक शब्द में वह मातृ-प्रेम की हिलोर पाती है। कितना आकर्षण होता है इन लोरियों में मातृ-प्रेम की इन भोली कविताओं में। साथ ही कितना रस और एक मीठा-सा
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere