देवेंद्र सत्यार्थी के संस्मरण
साहिर लुधियानवी
मुझे अच्छी तरह याद है। उस रोज़ दिन भर बारिश होती रही। शाम के वक़्त बूँदें ज़रा थम गई थीं, लेकिन प्रकाश पर अभी तक बादल छाए थे। ऐसा लगता था कि अभी भी मेंह फिर बरसने लगेगा। मैं और गोपाल मित्तल ‘मकतबा-उर्दू’ से ब्रांडर्थ रोड की तरफ़ जा रहे थे। अनारकली के
नए देवता
गाजर के गर्म हलवे की ख़ुशबू से सारा कमरा महक उठा था और यदि किसी दावत की सबसे बड़ी ख़ूबी यही है कि हर खाना बड़े सलीके से तैयार किया जाए और 'मामूली से मामूली चीज़ में भी एक नया ही ज़ायका पैदा कर दिया जाए तो निस्संदेह दिल्ली की वह दावत मुझे सदा याद रहेगी।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere