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इक्कीसवाँ साल

ikkiswan sal

राही मासूम रज़ा

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राही मासूम रज़ा

इक्कीसवाँ साल

राही मासूम रज़ा

और अधिकराही मासूम रज़ा

    मरियम बेटी

    जब तू आकर मेरी गोद में घुस जाती है

    तब मुझको ऐसा लगता है

    जैसे जाड़े की एक धुँधली सुबह,

    रज़ाई कुहर की सर से फेंक के

    घर में बैठी है

    मेरे दिल का हर गोशा गर्मा जाता है

    मेरी बूढ़ी आँखों से आँसू के क़तरे बहकर गालों तक आते हैं

    जैसे छत से

    परछाईं की गुड़िया लेकर

    धूप-आँगन में उतर आती है

    तू ही मेरी धूप है,

    मेरी परछाईं भी

    जब तू आकर

    मेरी गोद में घुस जाती है

    मेरी गोद में कितने हाथ-से उग आते हैं

    कोई हाथ तिरे माथे से

    तेरे बालों की लट सरकाने लगता है

    कोई हाथ तिरे गालों के फूलों की ख़ुशबू को सहलाने लगता है

    कोई हाथ तिरे हाथों को जीना समझाने लगता है

    कोई हाथ तिरी आँखों से मिरे बूढ़े अक्स को सरकाने लगता है

    मरियम बेटी

    तेरे बाप की बूढ़ी गोद तो तेरी ही थी

    तेरी ही है

    लेकिन अब तू

    बूढ़ी गोद के इन हाथों से बाहर जा

    क्योंकि तू आज ये बात समझ ले

    अब इस बूढ़ी गोद का कोई ठीक नहीं है

    स्रोत :
    • पुस्तक : ग़रीबे-शहर (पृष्ठ 88)
    • संपादक : कुँवरपाल सिंह
    • रचनाकार : राही मासूम रज़ा
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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