चंडीदास के उद्धरण

प्रियतम तुम मेरे प्राण हो। मैंने देह, मन, कुल, शील, जाति, मान सब तुम्हें सौंप दिया। हे अखिल के नाथ श्याम, तुम योगियों के आराध्य धन हो। हम गोपियाँ हैं, बड़ी दrन हैं, भजन-पूजन कुछ नहीं जानतीं। सब लोग हम पर कलंक लगाते हैं, पर उसका मलाल नहीं है। तुम्हारे लिए कलंक का हार गले में धारण करना सुख की बात है।

ऐसा प्रेम न कहीं देखा गया न सुना गया, प्राणों से प्राण अपने-आप बँधा हुआ है।
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