पानी पर दोहे
पानी या जल जीवन के अस्तित्व
से जुड़ा द्रव है। यह पाँच मूल तत्त्वों में से एक है। प्रस्तुत चयन में संकलित कविताओं में जल के विभिन्न भावों की प्रमुखता से अभिव्यक्ति हुई है।
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे के बिना संसार का अस्तित्व नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।
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धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
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जगजीवन जन तापहर, चपला पियु बपु स्याम।
वैष्णोंवल्लभ नीलग्रिव, हरि माधो जस नाम॥
(१) हे संसार के जीवन (जल) रूपी मेघ, तू लोगों का ताप हरनेवाला है। तू चपला (बिजली) का स्वामी है और काले शरीरवाला है। तू वनस्पतियों और मयूरों का प्रिय है। हरि (इंद्र) और माधव (कृष्ण) आदि नामों से भी तुझे पुकारा जाता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere