सच पर बेला

05 अप्रैल 2025

शोक स्थायी है

शोक स्थायी है

मैं कितना अपढ़ और अहंकारी हुआ जाता हूँ, इसका भान भी पढ़ने और जीने से ही आता है। आजकल ऐसा लगता है कि मैं अपने आप को ही पसंद नहीं आ रहा हूँ। जीवन की अपनी मुश्किलें हैं और आपसे सबकी अपेक्षाएँ भी,

05 मार्च 2025

हमारे समय का आर्तनाद है ‘शान्ति पर्व’ की कविताएँ

हमारे समय का आर्तनाद है ‘शान्ति पर्व’ की कविताएँ

आशीष त्रिपाठी का अद्यतन काव्य संग्रह ‘शान्ति पर्व’ विवेकशील मानस की भाव-यात्रा है। भाव के साथ चेतना भी जागृत है। इस यात्रा में सब कुछ है, सब कुछ! फणीश्वरनाथ रेणु के शब्दों में कहें तो—“इसमें फूल भी ह

25 फरवरी 2025

आजकल पत्नी को निहार रहा हूँ

आजकल पत्नी को निहार रहा हूँ

आजकल पत्नी को निहार रहा हूँ, सच पूछिए तो अपनी किस्मत सँवार रहा हूँ। हुआ यूँ कि रिटायरमेंट के कुछ माह पहले से ही सहकर्मीगण आकर पूछने लगे—“रिटायरमेंट के बाद क्या प्लान है चतुर्वेदी जी?” “अभी तक

06 अगस्त 2024

संवेदना न बची,  इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?

संवेदना न बची, इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?

24 जुलाई 2024 भतृहरि ने भी क्या ख़ूब कहा है— सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।।  अर्थात् : जिसके पास धन है, वही गुणी है; या यह भी कि सभी गुणों के लिए धन का ही आसरा है।  बताइए, क्या यह आज भी सच