तंत्र पर दोहे
‘तनोति त्रायति तंत्र’—अर्थात
तनना, फैलाव, विस्तार से त्राण पाना तंत्र है। भारत में सिद्धों-नाथों की परंपरा में इनकी विशिष्ट काव्याभिव्यक्ति पाई जाती है। तंत्र-साधना का लोकप्रिय अभिप्राय गुह्य-साधना है। प्रस्तुत चयन तंत्र-संबंधी विभिन्न काव्य-रूपों से किया गया है।
मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि।
दसवाँ द्वारा देहुरा, तामै जोति पिछांणि॥
मन को मथुरा (कृष्ण का जन्म स्थान) दिल को द्वारिका (कृष्ण का राज्य स्थान) और देह को ही काशी समझो। दशवाँ द्वार ब्रह्म रंध्र ही देवालय है, उसी में परम ज्योति की पहचान करो।
सुरति निरति नेता हुआ, मटुकी हुआ शरीर।
दया दधि विचारिये, निकलत घृत तब थीर॥
जो जिण सो हउँ, सोजि हउँ, एहउ भाउ णिभंतु।
मोक्खहँ कारण जोइया, अण्णु ण तंतु ण मंतु॥
जो परमात्मा है, वह मैं हूँ, वही मैं हूँ– विश्वास के साथ यह जान। हे योगी, मोक्ष का कारण कोई अन्य तंत्र मंत्र नहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere