स्थिरता पर उद्धरण

शून्य स्थान में ही स्थिरता संभव है।

आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है। उसी प्रकार न तो इसको पानी गला सकता है और न वायु सुखा सकता है। यह आत्मा कभी न कटने वाला, न जलने वाला, न भीगने वाला और न सूखने वाला तथा नित्य सर्वव्यापी, स्थिर, अचल एवं सनातन है।

वह पूर्ण से भी पूर्ण है, सदा स्थिर रहने वाला है और कृपालु है। इच्छानुसार देने वाला है, जीविका देने वाला है, कृपालु और दयालु है।

जिस प्रकार कमल के पत्ते पर गिरी हुई जल की बूँद उसमें स्थिर नहीं रहती है, उसी प्रकार अनार्यों (नीचों) के साथ मित्रता स्थिर नहीं होती है।