जेहि मारग गये पण्डिता, तेई गई बहीर।
ऊँची घाटी राम की, तेहि चढ़ि रहै कबीर॥
जिस रास्ते से पुरोहित एवं पंडित लोग जाते हैं, उसी रास्ते से भीड़ भी जाती है, किंतु कबीर तो सबसे अलग एवं स्वतंत्र होकर स्वरूपस्थिति रूपी राम की ऊँची घाटी पर चढ़ जाता है।
आधी साखी सिर खड़ी, जो निरूवारी जाय।
क्या पंडित की पोथिया, जो राति दिवस मिलि गाय॥
विचार एवं निर्णय करके आचरण में लायी गई बोधप्रद आधी साखी भी पूर्ण कल्याणकारी हो सकती है। निर्णय-रहित पंडित की बड़ी-बड़ी पोथियों को रात-दिन गाने से क्या लाभ जिनमें स्वरूप का सच्चा बोध नहीं है।
पाँच तत्व का पूतरा, युक्ति रची मैं कीव।
मैं तोहि पूछौं पंडिता, शब्द बड़ा की जीव॥
पांच तत्वों के इस पुतले शरीर को मैंने ही रचकर तैयार किया है। हे पंडितों! मैं तुमसे पूछता हूँ कि शब्द बड़ा होता है या जीव?
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere