जातिवाद पर पद

भारतीय समाज के संदर्भ

में कवि कह गया है : ‘जाति नहीं जाती!’ प्रस्तुत चयन में जाति की विडंबना और जातिवाद के दंश के दर्द को बयान करती कविताएँ संकलित की गई हैं।

पद-37

अष्टभुजा शुक्‍ल

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere