बनारस पर निबंध
ग़ालिब ने बनारस को दुनिया
के दिल का नुक़्ता कहना दुरुस्त पाया था जिसकी हवा मुर्दों के बदन में भी रूह फूँक देती है और जिसकी ख़ाक के ज़र्रे मुसाफ़िरों के तलवे से काँटे खींच निकालते हैं। बनारस को एक जगह भर नहीं एक संस्कृति कहा जाता है जो हमेशा से कला, साहित्य, धर्म और दर्शन के अध्येताओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा। इस चयन में बनारस की विशिष्ट उपस्थिति और संस्कृति को आधार लेकर व्यक्त हुई कविताओं का संकलन किया गया है।
बनारस का बुढ़वामंगल
...काशी के पूर्व छोर से लेकर पश्चिम पर्यंत के प्रत्येक घाटों पर जो अनुमान ढाई-तीन कोस के विस्तार में होंगे, काशिराज और नगर प्रतिष्ठित महाजनों से लेकर, मदनपुर के जुलाहों तथा श्मशान के डोमड़ों तक की नौकाएँ निज शक्ति और श्रद्धा के अनुसार सुसज्जित देख पड़ने
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere