Font by Mehr Nastaliq Web

मि० नैब

mi० naib

फेरेन्स मोल्नार

अन्य

अन्य

और अधिकफेरेन्स मोल्नार

    बोर्डिंग हाउस में रहने वाले छात्र, बड़ी नाक वाले मि० नैब का पर्याप्त सम्मान करते थे। उस बोर्डिंग हाउस का संचालन एक तेज़-तर्रार बूढ़ी स्त्री किया करती थी। बूढ़ी स्त्री की एक बिटिया थी। बेटी का विवाह हो चुका था, लेकिन वर्तमान में वह विधवा थी। उम्र थी मात्र छब्बीस वर्ष। नैब और वो एक-दूसरे को बेइंतहा प्यार किया करते थे। नैब के वास्तविक नाम को तो मैं भूल ही चुका हूँ। रूसी नाम था—बेहद लंबा और अटपटा, लेकिन उसमें नैब शब्द आता था। जब इस बोर्डिंग हाउस में, मैं रहने पहुँचा था तब नैब—जैसा उसे सभी पुकारा करते थे और बोर्डिंग हाउस की बूढ़ी मालकिन की युवा विधवा बेटी, एक-दूसरे के प्यार में पागल थे। यह संबंध लंबे समय से चलता रहा था। नैब ने बहुत पहले ही डाक्टरी की परीक्षा पास कर ली थी, इसके बावजूद बोर्डिंग हाउस छोड़ने का उसका कोई इरादा था। उधर उसके पिता लगातार पत्र लिख उससे ओडेसा लौटने का इंतज़ार कर थक चुके थे। पिता ने केवल ओडेसा में उसके लिए नौकरी तय कर दी थी, वरन् उसके लिए प्यारी-सी दुलहन भी देख रखी थी। पत्रों का सार यह था कि नैब के भावी जीवन की पूरी तैयारी उन्होंने कर रखी है, बस उसके लौटने भर की देर है, लेकिन नैब का ऐसा कोई इरादा था ही नहीं। पिता-पुत्र के बीच पत्र-युद्ध चलता रहा और अंत में बूढ़े रूसी पिता ने हताश हो पत्र लिखना ही बंद कर दिया था। लेकिन अचानक ही नैब का मन इस युवती से ऊब गया। गलियारे में चलते उसके सरसराते हरे पेटीकोट की आवाज़ों या कोमल पैरों के सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने की पदचाप से उसमें प्रेम के ज्वार उठने बंद हो गए। नैब एक आत्मतुष्ट व्यक्ति था—कल्चर से उसे कुछ लेना-देना था, मूलत: वह एक दकियानूस रूसी किसान मात्र था, अहसान फरामोश था नैब।

    बोर्डिंग हाउस में साढ़े सात बजे शाम को भोजन के घंटे बजने की परंपरा शुरू से ही चली रही थी, लेकिन एक प्यारी-सी साँझ जब घंटा बजा तो बारी-बारी से सभी डायनिंग टेबिल को घेर कर अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठ गए,केवल उस जर्मन बालक की कुर्सी खाली थी। गर्मागर्म स्वादहीन सूप डायनिंग टेबिल पर रख दिया गया, लेकिन अभी भी जर्मन बालक की कुर्सी ख़ाली थी।

    इस पर हरे पेटीकोट वाली युवती ने नौकर से कहा, ‘एक बार घंटा और बजा दो, लगता है कुर्ट ने सुना नहीं है।’

    घंटा बजने के बावजूद कुर्ट नहीं आया तो सपनीली आँखों वाली उस युवती ने नज़रें उठाकर कहा—‘प्लीज़ चौथे माले पर जर्मन बच्चे को खाने की ख़बर तो दे आओ।’

    टेबिल पर नैब को छोड़ सभी स्कूली बच्चे बैठे थे, इसलिए वह उसकी ओर घूम गई।

    ‘वो, आया क्यों नहीं?’

    ‘मैं नहीं जानता।’

    ‘कहीं वो बीमार हो? उसने मुझसे शिकायत की थी कि उसे अच्छा नहीं लग रहा है।’

    ‘मेरे कमरे में भी वह आया था, ‘मुझे नींद नहीं रही,’ उसने शिकायत की थी, लेकिन मैं जानता हूँ यह उसके साथ क्यों हो रहा है?’

    यह सुनते ही टेबिल के चारों ओर मुस्कराहटें फैल गई थीं। बोर्डिंग हाउस में घर की यादें पानी के जहाज़ की यात्रा की बीमारी जैसी होती हैं। लेकिन जब उसकी आदत पड़ जाती है, तब दूसरों को उस परिस्थिति में देख उनके चेहरे खिल जाते हैं। इसीलिए वे जर्मन लड़के के बारे में सुन हँस दिए थे, जो सोलह वर्ष की उम्र में इरफर्ट से यहाँ आया था और अपनी रातें रो-रोकर करवटें बदलते काट रहा था—अनजानी जगह में भला रोने के सिवाए और किया ही क्या जा सकता है? किसी को खिड़कियों की याद आने पर रुलाई आती है, तो किसी की रुलाई कंबल को याद कर फूट पड़ती है, तो किसी को नौकर की याद से और किसी को घर की प्लेटों की याद से। खाने की टेबिल पर प्रतीक्षा करते किसी को घर पर बाक्स पर बैठने की याद आते ही रोना सकता है।

    नौकर इस बीच लौट आया था। ‘मैं उसके कमरे में जाऊँ कैसे, दरवाज़ा जो बंद है।’

    ‘शायद वह कमरे में है नहीं।’

    ‘नहीं, वह भीतर है, मुझे उसकी आहट मिली थी।’

    सुंदर युवती ने निराश आँखों से नैब की ओर देखा।

    ‘उसे लेकर मैं पहिले से ही परेशान हूँ...प्लीज़ ऊपर जाकर देखो न, आख़िर उसे हुआ क्या है? यदि वह रो रहा हो तो उसे समझा-बुझा कर ले ही आओ। बस, ये बच्चे रोते रहते हैं लगातार और जब कमज़ोर हो जाते हैं तो उनके माँ-बाप सोचते हैं कि उन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता यहाँ।’

    नैब ने टेबिल पर नैपकिन रखी और कमरे से बाहर चला गया। सीढ़ियाँ चढ़ते उसे अपनी ज़िंदगी से चिढ़ छूट रही थी। हूँ...तो अब इस घर का वह नौकर है—इसीलिए तो उसे जर्मन लड़के को लाने भेजा है। कुछ समय पहिले यही प्यार था—जैसे अच्छी-बुरी प्रत्येक हरकत प्यार थी कभी। कहीं गुम हो चुके उस प्यार के नाम पर अब उसे उस संपन्न जर्मन लड़के की घर की याद में बहती नाक पोंछना है।

    ‘मेरी इस घटिया ज़िंदगी का सत्यानाश हो’, सीढ़ियाँ चढ़ते नैब ने मन ही मन कहा, ‘इस लड़के के कान पर तो मैं घूँसा ही जड़ने वाला हूँ...मैं....’

    चौथी मंज़िल पहुँच उसने कुर्ट के कमरे के सामने पहुँच की-होल से भीतर झाँकना चाहा, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा, क्योंकि भीतर वहाँ रूमाल टँगा था। ‘ओऽऽ होऽऽ’ नैब ने सोचा, ‘लगता है यहाँ कुछ गड़बड़ है।’ उसने दरवाज़ा खटखटाते हुए ज़ोर से कहा, ‘प्लीज़ऽऽ दरवाज़ा खोलो।’

    अंदर से कोई उत्तर नहीं आया।

    ‘प्लीज़...मैं नैब हूँ नैब—लंबी नाक वाला नैब।’

    उत्तर की जगह अंदर कमरे में कुछ धड़ाम से गिरा—जैसे कुर्सी गिरी हो।

    ‘मेरी बात सुन रहे हो,’ नैब ने चिल्लाकर कहा, ‘यदि तुमने दरवाज़ा नहीं खोला तो मैं तोड़ दूँगा। तुम वहाँ क्या कर रहे हो? मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, मैं दरवाज़ा तोड़ दूँगा, चूँकि मैं...मैं बोर्डिंग हाउस का इंस्पेक्टर हूँ।’ इंस्पेक्टर कहते ही उसके चेहरे पर कड़वाहट भरी मुस्कराहट फैल गई। इस व्यंग्यात्मक विशेषण के बारे में सोच उसने हल्का महसूस किया। मन ही मन उसने कहा, ‘धत्त तेरे की!’

    अंदर से चाबी घूमने की आवाज़ आई और दरवाज़ा खुला। दहलीज़ पर शव जैसा रक्तहीन चेहरा लिए कुर्ट खड़ा था। उसके हाथ ज़ोर-ज़ोर से काँप रहे थे। अटारी की खिड़की से लटकी एक रस्सी पर नैब की नज़र पड़ी, जिसका ऊपरी सिरा शहतीर से बँधा था और दूसरे से फंदा बना था।

    नैब ने सायास थूक गुटका और दरवाज़ा बंद कर जर्मन लड़के का हाथ पकड़ खिड़की के पास पहुँच कहा, ‘तुम्हारा नाम क्या है?”

    ‘कुर्ट।’

    ‘हाँ, तो कुर्ट यह समझने के लिए कोई विशेष बुद्धि की आवश्यकता तो है नहीं कि तुम फाँसी लगाने जा रहे थे—बँधी रस्सी सामने होने और तुम्हारे खाने की टेबिल पर पहुँचने से तो यही दिख रहा है। तो तुम घर की यादों से परेशान हो कुर्ट?’

    चश्मा पहिने लड़के ने पीड़ा भरी मुस्कराहट के साथ कहा, ‘हाँ।’

    नैब ने एक बार फिर थूक निगलते हुए कहा, ‘घर की यादें बेहद सुहानी होती हैं और अपने देश से तो सभी प्यार करते हैं। मैं भी अपने देश से करता हूँ, हालाँकि मैं रूसी हूँ। अपने देश से तो सभी प्यार करते हैं, यहाँ तक कि पशु भी। एक बार हमारे यहाँ एक कुत्ता टोबोलस्क से ओडेसा लौट आया था केवल सूँघते हुए। यह क्या था। अपने देश से प्यार ही था।’

    ‘हॉऽऽ’, कुर्ट ने जल्दी-जल्दी साँसें लेते हुए कहा, जिनका अंत सुबकने में होना था।

    ‘लेकिन मैंने आज तक तो नहीं सुना कि किसी ने अपने देश की याद में फाँसी लगा ली हो। हाँ, कभी-कभार जल्लाद ज़रूर देश प्रेम के बदले में फाँसी देते हैं, लेकिन वह तो बात ही कुछ और होती है। तुम्हारे मामले में रस्सी ने तो तुम्हारी सहायता की नहीं या फिर तुम फाँसी लगाकर घर पहुँच जाना चाहते हो ऐं?’ नैब ने भावुक स्वर में हौले से कहा था, लेकिन आवाज़ में प्यार और हास्य का पुट मिलाते हुए, किसी नशे में धुत निर्धन दार्शनिक की तरह जो सड़क के कुत्ते की राह पर चल रहा हो, कहा था।

    लेकिन उधर कुर्ट रोने लगा था, ‘नहींऽऽ’ उसने सुबकते हुए कहा, ‘आप नहीं जानते मैं क्यों मरना चाहता हूँऽऽ।’

    नैब ने उसे एकटक देखा। ‘क्यों ऽऽ क्या यह कारण नहीं है?’

    ‘नहीं! आपके चेहरे पर दया-माया है। इस अजनबी देश में मि० नैब आपका चेहरा सबसे अधिक सद्भावना और सहानुभूति से भरा है। मैं...मैंऽऽ आपको सब कुछ बतला दूँगा...मि० नैब...मैं मरना चाहता हूँ—प्यार में।’

    ‘प्यार में मरना, यह एक ईमानदार कारण तो है, लेकिन तुम किससे प्यार करते हो?’

    आँसुओं से भरे चेहरे पर एक चमक सी कौंधी। लड़के ने अपना चश्मा उतारा, पोंछा, मुस्कुराया, रोया, हँसा, आँखें बंद कीं और भटके हुए पक्षी की तरह सिर घुमाकर कहा, ‘मैं उस छोटी-सी स्त्री से प्यार करता हूँ—विधवा से, बोर्डिंग हाउस की मालकिन की बेटी, उस देवी से—सरसराते पेटीकोट वाली से, सुगंध फैलाने वाली से, क्योंकि वो कितनीऽऽ तो अच्छी है!’

    ‘अच्छा’ नैब ने कहा, ‘और...?’

    ‘और, और मैं मरना चाहता हूँ...क्योंकि मैं कभी ख़ुश रह ही नहीं सकता।’

    ‘और ?’

    ‘और वो छब्बीस की है और मैं हूँ मात्र सोलह का, वो माँसल गोलमटोल और बेहद सुंदर है— एक भरी पूरी स्त्री और मैं हूँ निरा लड़का—अर्धविकसित पुरुष, बिना मूँछों और कोमल हाथों वाला— और मैं जानता हूँ कि अभी पुरुष नहीं हूँ, और मैं यह भी जानता हूँ कि उसकी आवश्यकता पूर्ण पुरुष की है—एक हीमैन।’

    ‘हीमैन?’ नैब ने दोहराया।

    ‘आप तो समझ ही सकते हैं, मैं चौड़े कंधे चाहता हूँ—तांबिया देह, सूरज से तपी माँसपेशियाँ। सुंदर खिलाड़ी जैसी पशुता से दमकता चेहरा, साथ ही कुछ उदास-सा, गंभीर-सा दिखना चाहता हूँ। उसके प्रति लापरवाह और तब वो मन ही मन मेरी प्रशंसा करेगी, मेरी कामना करेगी, लेकिन मैं उससे बात तक नहीं करूँगा, उसे अनदेखा कर निकल जाया करूँगा और तब उसकी चाहत बढ़ती जाएगी—लेकिन यह तो हो ही नहीं सकता। मैं दुबला-पतला हूँ और चश्मा पहिनता हूँ और मेरा चेहरा दूधिया रंग का है और मैं प्यारा दिखता हूँ मि० नैब और कोमल भी और लाड़-प्यार में पला-बढ़ा—बस केवल सहलाने योग्य और वो सुंदरी तो मुझे कभी आँख उठाकर देखना तो छोड़ो, मुझ पर थूकेगी भी नहीं।’ इतना कह कुर्ट ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उधर इरहर्ट में कहीं बैठे उसके पापा-मम्मा खाने की टेबिल पर बैठे हल्की-सी मुस्कराहट के साथ कह रहे होंगे, ‘हमारा प्यारा कुर्ट भला इस समय क्या कर रहा होगा?’ वे नहीं जानते कि इधर कुर्ट हरे कोच पर पड़ा तड़प रहा है, रो रहा है और उसके पेट, दिल और अंतड़ियों में भयंकर पीड़ा हो रही है और वे यह भी नहीं जानते कि उसने अभी-अभी मौत का चेहरा देखा है और उसने वह पल भी जी लिया है जब व्यक्ति मृत्यु के निकट होता है, इतने पास कि संभवतः अपनी वास्तविक मृत्यु के पूर्व ही अब उस पल को दोबारा देख पाएगा।

    ‘रो लेने के बाद अब मैं बेहतर महसूस कर रहा हूँ,’ कह उसने नैब से हाथ मिलाते हुए अपनी बात पूरी की।

    ‘लेकिन...आज रात मैं मर जाऊँगा। मि० नैब आप मुझसे चाहें तो अलविदा कह सकते हैं।’

    ‘अच्छा...ठीक है,’ नैब ने कहा, ‘लेकिन कुछ इंतज़ार तो कर ही सकते हो।’ कह उठकर उसने ताले से चाबी निकाली और खिड़की से बँधी रस्सी खोलकर उसे जेब में ठूँस लिया...

    ‘तुम यहीं रुको, मैं गया और अभी आया।’

    ‘तुम उसको तो नहीं कहोगे न?’

    लड़के ने जिस अंदाज में कहा था, उत्तर में यदि नैब ने ‘नहीं,’ कह दिया होता तो लड़के का दिल ही टूट जाता।

    ‘मैंने तुमसे कहा न, कुछ देर इंतज़ार कर लो बस,’ कह सीढ़ियाँ उतर नैब ने डायनिंग रूम में पहुँच स्त्री को बुलाकर फुसफुसा कर कहा, ‘कुर्ट फाँसी लगाना चाह रहा है।’

    ‘क्यों?’

    ‘क्योंकि वह तुमसे प्यार करता है, अपने कमरे में वह लगातार रोए जा रहा है और मरना चाहता है।’

    स्त्री ने मुस्कुराकर कहा, ‘शानदार।’

    ‘हाँ’, कह नैब ने उसे गौर से देखा। वो बहुत सुंदर लग रही थी, उसकी आँखें गर्व से चमक रही थीं और उसके ओंठ गीले और लाल थे।

    ‘हाँ,’ नैब ने दोहराया और गले में कुछ अटकता-सा महसूस किया, जैसे ही उसने फिर से स्त्री को देखा। चार मंज़िल ऊपर सर्द मौत गलियारे में प्रतीक्षा करती खड़ी थी और यहाँ, यह स्त्री थी—सुंदर, ऊष्मा से भरी और गुदाज़ देह की स्वामिनी।

    ‘ऊपर चल कर उससे मिल लो,’ नैब ने पर्याप्त ज़ोर से कहा, ताकि सभी लड़के सुन लें। स्त्री ने नैपकिन कुर्सी पर फेंका और बाहर निकल गई। नैब उसके पीछे चल दिया, लेकिन वह उसके निकट नहीं पहुँच सका, क्योंकि वो बहुत तेज़ चल रही थी। स्त्री ने दौड़कर सीढ़ियाँ कुछ ऐसे अंदाज में चढ़ीं, जैसे सबसे बड़ी ख़ुशी उसकी प्रतीक्षा कर रही हो।

    कमरे में पहुँच दोनों ने जर्मन लड़के को कोच पर पड़े देखा। इन्हें देखते ही वह कूद कर खड़ा हो गया था। उसके चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई और वह पीला पड़ गया।

    स्त्री ने मुस्कुराकर उसे देखते हुए प्यारी-सी गुदगुदाती आवाज़ में कहा, ‘नैब ने मुझे अभी-अभी बतलाया कि तुम्हें घर की बहुत याद रही है।’

    ‘हाँऽऽऽ’ कहते लड़के ने आभार प्रकट करती आँखों से नैब को देख मन ही मन उनकी समझदारी के लिए धन्यवाद दिया।

    ‘चिंता क्यों करते हो,’ स्त्री ने फुसफुसाकर कुछ उस अंदाज में कहा जिससे बड़ों से बात की जाती है और वह भी आंतरिक क्षणों में, ‘यहाँ तो तुम आराम से रहो। सभी तो तुम्हें यहाँ प्यार करते हैं, है मि० नैब?’

    ‘हाँऽऽ’ नैब ने फुसफुसाकर कहा और खिड़की के बाहर देखा।

    अब जल्दी से अपने को दुरुस्त कर लो, चलो-चलो, जल्दी करो, कह उसके बालों में उँगलियाँ चला उन्हें सहलाया और उसके सिर को अपनी छाती से सटा लिया। लड़के ने आँखें बंद कर ली और युवती की भरी छातियों में सिर ज़ोर से दबा लिया। उसकी हरकत बचपने से भरी थी, लेकिन उसके होंठ जल रहे थे और वह हँसना और रोना चाहता था—स्त्री के ओठों को चूमना चाहता था, उसके सिर को अपने दोनों हाथों में ले प्यार की कामना के साथ उन अनुभवी आँखों से प्यार या फिर मृत्यु की आकांक्षा—जो प्राय: इस आयु के लड़कों में पाई जाती है। जबकि उसका सिर एक दुश्चरित्र स्त्री अपने वक्षस्थल से ममता से भर कर लगाए थी। —कामाग्नि से जलती चरित्रहीन स्त्री होने के फलस्वरूप लड़के के रक्त में ज्वार उठने लगे थे—उधर इरवर्ट में दो बूढ़ी देहें रात का भोजन करती हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ कह रही थीं, ‘अच्छा अब हमारा कुर्ट इस समय क्या कर रहा होगा?’

    नैब ने दोनों की ओर मुड़कर हल्की-सी नाराज़गी से कहा, ‘अच्छा अब बहुत हो गया—अब नीचे चलो खाने की टेबिल पर।’

    युवती ने लड़के के सिर को अपनी गिरफ़्त से छोड़ दिया। लड़के के बाल बिखर गए थे। उसने मुस्कुराते हुए काँपती आवाज़ में कहा, ‘आज रात तो मैं नीचे नहीं जाऊँगा, उनसे कह देना मेरी तबियत ठीक नहीं हैं—उँ...हूँ...मैं नीचे क़तई नहीं जाऊँगा—मेरी आँखें रो-रोकर लाल हो गई हैं...’

    नैब और स्त्री नीचे चले आए। कुर्ट ने उनके जाते ही कोच पर लेट अपनी आँखें बंद कर लीं। बंद आँखों से आँसू बहने लगे थे। उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह बोर्डिंग हाउस में आठ-दस वर्ष तक रहेगा और तब शायद स्त्री उसकी हो जाएगी। भला अब उसे मरने की आवश्यकता ही क्या है, जबकि उसने उसकी भरी छातियों को चुपचाप चूम ही लिया है। नीचे डाइनिंग रूम में सभी शांति से भोजन करते रहे, उसके बाद सभी रहने वाले अपने-अपने कमरों में चले गए—केवल नैब और स्त्री वहाँ बैठे थे। (उनके लिए भोजन अलग से रख दिया गया था)—फिर वे भी उठ खड़े हुए।

    नैब ने स्त्री को देखा—इस पल वह ऊब महसूस नहीं कर रहा था। वे ड्राइंग रूम में चले गए थे, वहाँ कोई भी था। एक लंबे समय तक वे ख़ामोश बैठे रहे, स्त्री चमकते गालों के साथ रहस्यमय ढंग से मुस्कुराती सामने देखे जा रही थी और नैब सिगरेट के कश लेता मौन बैठा रहा। डाइनिंग हाल में जाने के पहिले उसने भोजन के बाद थियेटर जाने का निश्चय किया था, लेकिन फ़िलहाल उसका इरादा कहीं भी जाने का था। उसने सिगरेट का अंतिम कश छोड़ते स्त्री को देखा। स्त्री ने नज़रें मिलते ही उससे प्रश्न किया, ‘कहीं लड़का स्वयं को नुकसान नहीं पहुँचा ले!’

    ‘नहीं’ नैब ने कह सिगरेट फेंकी और स्त्री के पास जा उसके माथे पर बिखरी लटों को हौले से अलग करते उसकी आँखों में झाँका।

    स्त्री ने शांति से कहा, ‘तुम्हारे विचार से क्या वह स्वयं को नुकसान पहुँचा सकता है?’

    ‘नहीं,’ कहते नैब ने उसके मुँह को चूम लिया। स्त्री ने खड़े हो नैब के सिर को अपने चेहरे से लगा फुसफुसा कर कहा—‘ऐसा लड़का...ऐसा...लड़का।’

    ‘नहींऽऽ नहीं,’ रूसी ने उसे आश्वस्त करते कहा, ‘यह हो ही नहीं सकता, रस्सी तो यहीं मेरी जेब में है,’ कह उसने रस्सी निकाल उसे दिखाई और फिर वे दोनों हँसने लगे। स्त्री की आँखें अधमुंदी हो रही थीं। फिर वे एक-दूसरे को बाँहों में घेरे ड्राइंग रूम से बाहर गए। दहलीज़ पर पहुँच वे रुक गए, क्योंकि नैब ने अभी अपना लम्बा चुंबन समाप्त नहीं किया था।

    ‘वेऽऽ हमें देख लेंगे,’ स्त्री ने फुसफुसाकर कहा, ‘यहाँ तो मत चूमो मुझे,’ कहती वह छूटकर आगे चली गई। नैब ने हाथ में ली रस्सी ज़ोर से फ़र्श पर फेंकी और उसके पीछे चल दिया।

    ‘मूर्ख जर्मन बालक’ उसने भुनभुनाते हुए कहा, ‘मूर्ख कहीं का!’

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 167)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : फेरेंस मॉल्नर
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए