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अपना-अपना काम

apna apna kaam

अज्ञात

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अपना-अपना काम

अज्ञात

नोट

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा तीसरी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

सिमरन बाग़ में बैठी स्कूल का काम रही थी। “ओ हो! मैं तो थक गई। इतना सारा लिखने-पढ़ने का काम!” वह सोचने लगी, “स्कूल जाओ तो वहाँ पढ़ो। घर आओ तो फिर पढ़ो। कितना अच्छा होता अगर मुझे पढ़ना पड़ता।”

पुस्तक रख सिमरन चारों ओर देखने लगी। उसने देखा कि मधुमक्खियाँ आनंदपूर्वक एक फूल से दूसरे फूल तक उड़ रही थीं।

“मैं भी मधुमक्खी बनना चाहती हूँ,” सिमरन ने कहा।

भिन-भिन करती मधुमक्खियाँ रुक गईं। वे अचंभित होकर बोलीं, “तुम तो इतनी सुखी हो, तुम क्यों हम जैसा नन्हा कीड़ा बनना चाहती हो?”

“मुझे क्या सुख है? इतना तो पढ़ना पड़ता है। मैं तो तुम्हारी तरह डाल-डाल, फूल-फूल उड़ना चाहती हूँ।” सिमरन ने कहा।

“इधर से उधर उड़ना हमारा काम है। सारे दिन उड़-उड़कर रस इकट्ठा करते-करते हमारे पंख थक जाते हैं और...”

“ओहो!” सिमरन ने कान बंद कर लिए, “सारे दिन पंख फैलाकर उड़ना पड़े तो मैं बहुत थक जाऊँगी। ना, ना...”

फिर उसने ऊपर देखा। फलों से लदा पेड़। “हाँ, अगर मैं पेड़ होती तो अच्छा था। आराम से एक जगह खड़े-खड़े सब कुछ मिल जाता।”

पेड़ हँसने लगा, “मैं समझ गया। तुम सोचती हो कि मैं आराम से खड़ा रहता हूँ, बस!”

“सुनो” पेड़ ने कहा, “मेरे शरीर का तो हर अंग दिन-रात काम करता है। जड़ें मिट्टी से पानी खींचती हैं। पत्ते दिनभर खाना बनाते हैं और इतने परिश्रम के पश्चात जो फल उगते हैं, वे भी हम तुम्हें दे देते हैं...”

सिमरन ने आँखें झुका लीं, “सच! ये पेड़ तो बहुत परिश्रम करते हैं। फल तो हम ही खा लेते हैं।”

“लेकिन इन चिड़ियों की मौज है।” सिमरन ने चिड़ियों को दाना खाते देखकर कहा, “हाँ, मैं भी चिड़िया बन जाती तो ठीक था।”

“ना, ना! यह क्या सोच रही हो?” एक चिड़िया बोली, “एक-एक दाना ढूँढ़ते-ढूँढ़ते सारे दिन उड़ती हूँ मैं। घोंसला बनाने के लिए भी बहुत परिश्रम करना पड़ता है, और...”

सिमरन बोली, “बस, बस! मैं समझ गई।” वह सोचने लगी, “परिश्रम से ही सब जीते हैं। मुझे भी परिश्रम करना चाहिए और मन लगाकर पढ़ना चाहिए।”

उसने अपनी पुस्तकें उठाईं और उत्साह से स्कूल का काम करने बैठ गई।

स्रोत :
  • पुस्तक : वीणा (पृष्ठ 100)
  • प्रकाशन : एनसीईआरटी
  • संस्करण : 2022
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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