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दोष-कोष मोहि जानि पिय
दोष-कोष मोहि जानि पिय, जो कुछ करहू सो थोर।अस विचारि अपनावहु, समझि आपुनी ओर॥
भक्त रूपकला
विधाता के पास सौंदर्य का
विद्यापति
मृत्यु के संबंध में मनुष्य के ज्ञान
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
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दोहे (एन.सी. ई.आर.टी)
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
रहीम
कोमल चमेली के पुष्पों की माला
कोमल चमेली के पुष्पों की माला अत्यंत कर्कश कुश की रस्सी में नहीं पिरोई जाती।
श्रीहर्ष
दुहि दुहि ल्यावत धौरी गैया
दुहि दुहि ल्यावत धौरी गैया।कमल नैन कौं अति भावत है, मथि मथि ध्यावत घेया॥
परमानंद दास
चलनी दुहि दुधै चहै
चलनी दुहि दुधै चहै, कुमति लिये चह राम।कलहनी नारि कुल छिनी, का करै पिया तन मान॥
मीतादास
कंत लखीजै दोहि कुल
कंत लखीजै दोहि कुल, नथी फिरंती छाँह।मुड़ियां मिलसी गींदवौ, वले न धणरी बाँह॥
सूर्यमल्ल मिश्रण
चारु चरण की आँगुरी
चारु चरण की आँगुरी, मो पै वरणि न जाइ।कमल-कोश की पाँखुरी, पेखत जिनहि लजाइ॥
रघुराजसिंह
रूप, कथा, पद, चारु पट
रूप, कथा, पद, चारु पट, कंचन, दोहा, लाल।ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्मगति, मोल रहीम बिसाल॥