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रजनी बितई रति सौं सजनी

rajni biti rati saun sajni

आलम

अन्य

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आलम

रजनी बितई रति सौं सजनी

आलम

और अधिकआलम

    रजनी बितई रति सौं सजनी थिरकैं दृग द्वै तजि चंचलता।

    कबि ‘आलम’ आलस ही जलपै किलकैं कुच खीन भई कलता।

    किये चक्रित बाम हरि कँचुकी गई उच्चकि यों छबि अंग लता।

    सकुच्यो जु सिवार समीर लगे प्रगटी सरकी मनो उज्जलता॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम-केलि (पृष्ठ 141)
    • संपादक : भगवानदीन
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : उमाशंकर मेहता
    • संस्करण : 1922

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