Font by Mehr Nastaliq Web

प्रीति मैं चूक न है उनके

priti main chook na hai unke

नरोत्तमदास

अन्य

अन्य

नरोत्तमदास

प्रीति मैं चूक न है उनके

नरोत्तमदास

और अधिकनरोत्तमदास

    प्रीति मैं चूक है उनके, हरि मों मिलिहैं उठि कंठ लगायकै।

    द्वार गये कछु दैहैं पै दैहैं वे, द्वारिकानाथजू हैं सब लायकै॥

    या विधि बीति गई पन द्वै, अब तो पहुँच्यौ बिरधापन आयकै।

    जीवन केतौ है जाके लिए, हरि सों अब होहुँ कनावड़ौ जायकै॥

    सुदामा ने कहा- श्रीकृष्ण वास्तव में बड़े प्रेमी हैं। उनके प्रेम में कोई कमी नहीं। यदि मैं उनके दर्शन करने जाऊँगा तो मुझे देखते ही वे उठकर गले से लगा लेंगे। उनके द्वार पर जाने से वे मुझे कुछ धन-संपत्ति आदि भी अवश्य देंगे। (फिर भी मैं वहाँ जाना नहीं चाहता)। बाल्यावस्था और युवावस्था मैंने ग़रीबी में ही बिता दी। अब वृद्धावस्था गई है। अब जीना ही कितने दिन है कि श्रीकृष्ण का अहसानमंद बनू।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुदामा-चरित (पृष्ठ 43)
    • संपादक : मोहनलाल 'रत्नाकार'
    • रचनाकार : नरोत्तमदास
    • प्रकाशन : ऋषभरचण जैन एवं सन्तति, नई दिल्ली-2

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए