मतिराम के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे
फूलति कली गुलाब की, सखि यहि रूप लखै न।
मनौ बुलावति मधुप कौं, दै चुटकी की सैन॥
एक सखी दूसरी सखी से चटचटा कर विकसित होती हुई कली का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि, इस खिलती हुई गुलाब की कली का रूप तो देखो न। यह ऐसी प्रतीत होती है, मानो अपने प्रियतम भौंरे को रस लेने के लिए चुटकी बजाकर इशारा करती हुई अपने पास बुला रही हो।
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तेरी मुख-समता करी, साहस करि निरसंक।
धूरि परी अरबिंद मुख, चंदहि लग्यौ कलंक॥
हे राधिके, कमल और चंद्रमा ने तुम्हारे मुख की समता करने का साहस किया, इसलिए मानो कमल के मुख पर तो पुष्परज के कण रूप में धूल पड़ गई, और चंद्रमा को कलंक लग गया। यद्यपि कमल में पराग और चाँद में कलंक स्वाभाविक है तथापि उसका यहाँ एक दूसरा कारण राधा के मुख की समता बताया गया है।
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प्रतिपालक सेवक सकल, खलनि दलमलत डाँटि।
शंकर तुम सम साँकरैं, सबल साँकरैं काटि॥
सब सेवकों का पालन करने वाले और दुष्टों का दमन करने वाले—नष्ट-भ्रष्ट कर देने वाले—हे भगवान् शंकर! आपके समान दु:खों या कष्टों की मज़बूत शृंखलाओं—ज़ंजीरों को काटने वाला भला मेरे लिए और दूसरा कौन है!
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रोस न करि जौ तजि चल्यौ, जानि अँगार गँवार।
छिति-पालनि की माल में, तैंहीं लाल सिंगार॥
हे लाल! यदि तुझे कोई गँवार मनुष्य, जो तेरे गुणों को नहीं पहचानता, छोड़कर चला भी गया तो भी कुछ बुरा मत मान; क्योंकि गँवार लोग भले ही तुम्हारा आदर न करें पर राजाओं के मुकुटों का तो तू ही शृंगार है। भाव यह है कि किसी विद्वान् गुणी व्यक्ति का कोई मूर्ख यदि आदर न भी करे तो भी उसे दु:खी नहीं होना चाहिए, क्योंकि समझदार लोग तो उसका सदा सम्मान ही करेंगे।
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कपट वचन अपराध तैं, निपट अधिक दुखदानि।
जरे अंग में संकु ज्यौं, होत विथा की खानि॥
अपराध करने से भी अपराध करके झूठ बोलना और कपट-भरे वचनों से उस अपराध को छिपाने का प्रयत्न करना बहुत अधिक दु:ख देता है। वे कपट वचन तो जले हुए अंग में मानो कील चुभाने के समान अधिक दु:खदायक और असत्य प्रतीत होते हैं।
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सुबरन बेलि तमाल सौं, घन सौं दामिनी देह।
तूँ राजति घनस्याम सौं, राधे सरिस सनेह॥
सोने की बेल तमाल वृक्ष से और बादल से बिजली का शरीर जिस प्रकार शोभित होता है, हे राधिका! सदृश स्नेह के कारण तू वैसे ही घनश्याम से शोभित होती है। भाव यह है कि तमाल वृक्ष, बादल और कृष्ण, इन तीनों श्याम वर्ण वालों से स्वर्णलता, बिजली और राधिका ये तीनों गौर वर्ण वाली अत्यंत सुशोभित होती हैं।
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अति सुढार अति ही बड़े, पानिप भरे अनूप।
नाक मुकत नैनानि सौं, होड़ परि इहिं रूप॥
इस सुंदरी के नाक के आभूषण के मोती और नैनों में मानो होड़-सी लग गई है, क्योंकि दोनों ही सुंदर, अनुपम और कांति से परिपूर्ण हैं। मोती भी सुंदर है आँखें भी। मोती भी सुडौल है, आँखें भी वैसी ही हैं। अत: मानों दोनों में होड़-सी लगी है कि कौन किस से सुंदर है।
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मुकुत-हार हरि कै हियैं, मरकत मनिमय होत।
पुनि पावत रुचि राधिका, मुख मुसक्यानि उदोत॥
श्रीकृष्ण के हृदय पर पड़ा हुआ सफ़ेद मोतियों का हार भी उनके शरीर की श्याम कांति से मरकत मणि-नीलम-के हार के समान दिखाई देता है। किंतु राधा के मुख की मुस्कराहट की श्वेत-कांति से नीलम का-सा बना हुआ वह मोतियों का हार फिर श्वेत-वर्ण कांति वाला बन जाता है।
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