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रहु मन नाम की डोरि सँभारे

rahu man nam ki Dori sanbhare

दूलनदास

अन्य

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दूलनदास

रहु मन नाम की डोरि सँभारे

दूलनदास

और अधिकदूलनदास

    रहु मन नाम की डोरि सँभारे।

    धृग जीवन नर नाम भजन बिनु, सब गुन वृथा तुम्हारे॥

    पाँच पचीसों के मद माते, निस दिन साँझ सकारे।

    बंदी-छोर नाम सुमिरन बिनु, जन्म पदारथ हारे॥

    अजहुँ चेत करु हेत नाम तैं, गज गनिका जिन्ह तारे।

    चाखि नाम रस मस्त मगन ह्वै, बैठहु गगन दुवारे॥

    यहि कलि काल उपाइ अवर नहीं, बनि है नाम पुकारे।

    जगजीवन साईं के चरनन, लागे दास दुलारे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संतबानी (पृष्ठ 2)
    • रचनाकार : दूलनदास
    • प्रकाशन : प्रोप्रैटर वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1914

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