प्रभु जी रहिजो सदा सहाई

prabhu ji rahijo sada sahai

सैन भगत

सैन भगत

प्रभु जी रहिजो सदा सहाई

सैन भगत

प्रभु जी रहिजो सदा सहाई।

अनगन भगतां तार दिया, प्रभु मुझ पे कृपा बणाई।

धन्ना नामदेव तार्या, दास कबीर सुखदाई॥॥

रैदास की साखी राखी, गंगा ठाम परगटाई।

भगतां की सेवा व्रत पालन, खूब करी सेवकाई॥

अणीदास की लाज बचावा, बण आया प्रभु नाई।

चक्र सुदरसन छोड़ प्रभु नापी, धारी ठाकुर की सेवकाई॥

ठाकुर ने तो तार दियो प्रभु, ठाकुर की पुण्याई।

म्हारो पुण्य कदां उगसी प्रभु, किरपा करो कनहाई॥

सैन भगत सद्गुरु किरपा, सबदां कही जाई।

प्रभु रहिजो सदा सहाई॥

हे प्रभु! आपने अनगिनत भक्तों को धन्य किया है। मुझ पर भी आपकी असीम कृपा है। धन्ना और नामदेव तथा कबीर को आपने धन्य किया है। रैदास की साख बचाई। उनके बर्तन में गंगा प्रकट कर दी। अपने भक्तों की सेवा और व्रत का पालन करने के उद्देश्य से आपने उनकी ख़ूब सेवा की। मुझ दास की लाज बचाने के लिए ठाकुर की खवासी करने नाई बनकर वहाँ मेरे रूप में जा पहुँचे। सुदर्शन चक्र त्याग कर उस्तरा धारण किया। हे प्रभु! आपने उस ठाकुर को दर्शन देकर उसका उद्धार तो कर दिया। मेरे पुण्य का सूर्य कब उदित होगा? सैन भक्त कहते हैं—सद्गुरू की कृपा का बखान शब्दों में संभव नहीं है। हे प्रभु! आप मेरी सहायता करो।

स्रोत :
  • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 303)
  • संपादक : अशोेक मिश्र
  • रचनाकार : संत सैन भगत
  • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
  • संस्करण : 2013

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