मोती त मंदर ऊसरहि

moti t mandar usarahi

गुरु नानक

गुरु नानक

मोती त मंदर ऊसरहि

गुरु नानक

मोती मंदर ऊसरहि रतनी होहि जड़ाउ।

कसतूरि कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाउ॥

मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति आवै नाउ।

हरि बिनु जीउ जलि बलि जाउ॥

मैं आपणा गुरु पूछि देखिआ अवरु नाही थाउ॥ ॥रहाउ॥

धरती हीरे लाल जड़ती पलघि लाल जड़ाउ।

मोहणी मुखि मणी सोहै करे रंगि पसाउ॥

मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति आवै नाउ॥

सिधु होवा सिधि लाई रिधि आखा आउ।

गुपतु परगटु होइ बैसा लोकु राखै भाउ॥

मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति आवै नाउ॥

सुलतानु होवा मेलि लसकर तखति राखा पाउ।

हुकमु हासलु करी बैठा नानका सभ वाउ॥

मतु देखि भूला वीसरै॥

मोती के घर बताए गए हो और उनमें रत्र जड़े गए हो। कस्तूरी, केशर, अगर और चंदन आदि (सुगंधित द्रव्यो) से इस प्रकार लिपे हो, जिससे मन में प्रसन्नता प्राप्त होती हो। (ऐ परमात्मा), ऐसे (मकानों को देखकर) मैं कही भुलावे अथवा धोखे में पड़ जाऊँ जिससे तेरा नाम भूल जाए और मेरे चित में आए।

हरि के प्रेम के बिना यह जीव जल-बल जाय (नष्ट हो जाय)। मैंनने अपने गुरु से यह भलीभाँति पूछकर देख लिया है कि (परमात्मा को छोड़कर) कोई अन्य स्थल (मेरे लिए) नहीं है।

(इतना ऐश्वर्य हो कि) पृथ्वी हीरो और लालो से जेड़ी ही और पलंभ भी लाल से जड़े हो। मन को मोहित करने वाली (अति सुंदरी स्त्री) हो, जिसके मुख पर मणियाँ सुशोभित हों और वह आनंद का प्रसार कर रही हो; (अर्थात प्रेम में नाना प्रकार के हाव-भाव करती हो)। (किंतु परमात्मा, इन सब भोगों के होने पर भी) मैं कही भुलावे अथवा धोखे में पड़ जाऊँ जिससे तेरा नाम भूल जाए और मेरे नाम भूल जाय औरे मेरे चित्त में आए।

(मैं) सिद्ध बन जाऊँ और (सिद्धियों का चमत्कार लोगों के सामने) ला दूँ—प्रत्यक्ष कर दूँ—और साथ ही ऋद्धियों को आज्ञा दूँ कि मेरे पास आओ (और वे मेरी आज्ञा को सुनकर सामने उपस्थित ही जाएँ) मैं। (अपनी चमत्कारिणी शक्ति से इच्छा करने पर) गुप्त हो कर बैठकर जाऊँ और फिर प्रकट हो जाऊँ। (इस प्रकार आश्चर्यकारिणी शक्ति देखकर) लोग मेरी श्रद्धा करने लगे। (किंतु प्रभु, इन सब अलौकिक ऋद्धियों के होने पर भी) मैं कही भुलावे अथवा धोखे पड़ जाऊं, जिससे तेरा नाम भूल जाय और मेरे चित्त में आए।

मैं सुल्तान हो जाऊँ, लश्कर (फौज, सेना) एकत्र कर लूँ राज्य-सिंहासन (तखत) पर पैर रक्खूँ, (सभी पर) हुक्म करूँ और महसूल वसूल करने बैठूँ, किंतु नानक कहते है (कि हे प्रभु, तेरे बिना यह सब ऐश्वर्य) हवा ही हैं (अर्थात पवनवत क्षणभँगुर हैं)। (हे परमात्मा, इन सब लौकिक और अलौकिक ऐश्वर्यों के प्राप्त करने पर भी मैं) कही भुलावे अथवा धोखे में पड़ जाऊँ, जिससे तेरा नाम भूल जाय और मेरे चित्त में आए।

स्रोत :
  • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 145)
  • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
  • रचनाकार : गुरु नानक
  • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
  • संस्करण : 2003

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