माया महा ठगनी हम जानी

maya maha thagni hum jani

कबीर

कबीर

माया महा ठगनी हम जानी

कबीर

माया महा ठगनी हम जानी।

तिरगुन फाँसि लिये कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।

केसव के कमला होइ बैठी, सिव के भवन भवानी।

पंडा के मूरत होइ बैठी तीरथहू में पानी।

जोगी के जोगिन होइ बैठी, काहू के कौड़ी कानी।

भक्तन के भक्तिन होइ बैठी, ब्रह्मा के ब्रह्मानी।

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, यह सब अकथ कहानी॥

हम माया को बहुत बड़ी ठगनी समझते हैं, उसके हाथ में त्रिगुण की फाँसी का फंदा है और होंठों पर मीठे बोल। केशव (विष्णु) के यहाँ कमला (लक्ष्मी) बन बैठी और शिव के यहाँ भवानी। पांडे घर मूर्ति बनी बैठी है और तीर्थ में पानी। जोगी के घर में जोगन हो गई और राजा के घर रानी। किसी के यहाँ हीरा बनकर आई और किसी के यहाँ कानी कौड़ी। भक्तों के यहाँ भक्तिन हो गई और ब्रह्मा के घर ब्रह्मानी। सुनो भाई साधु, कबीर कहते हैं कि यह अकथनीय कथा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 95)
  • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
  • संस्करण : 2010

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