जरणा कौ अंग
jarna kau ang
सतगुरु शरणें आयक तामस त्यागिये।
बुरी-भली कह जाय ऊठ नहिं लागिये॥
उठ लाग्या में राड़, राड़ में मीच है।
हरि हाँ, जा घर प्रगटै क्रोध सोइ घर नीच है॥
कहि-कहि वचन कठोर खरूँठ नहिं छोलिये।
सीतल सांत स्वभाव सबन सूँ बोलिये॥
आपन सीतल होय और भी कीजिये।
हरि हाँ, बलती में सुण मीत न पूला दीजिये॥
- पुस्तक : संत-सुधा-सार (पृष्ठ 566)
- संपादक : वियोगी हरि
- रचनाकार : वाजिद
- प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, प्रकाशन
- संस्करण : 1953
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