Font by Mehr Nastaliq Web

हरि जन हरि के हाथ बिकाने

hari jan hari ke hath bikane

धरनीदास

अन्य

अन्य

धरनीदास

हरि जन हरि के हाथ बिकाने

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    हरि जन हरि के हाथ बिकाने।

    भावै कहा जग धृग जीवन है, भावै कहो बौराने॥

    जाति गँवाय जाति कहाये, साधु संगति ठहराने।

    मेटो दुख दारिद्र परानो, जूठन खाय अघाने॥

    पाँच जने परवल परपंची, उलटि परे बंदिखाने।

    छुटी मजूरी भये हजूरी, साहब के मन माने॥

    निरममता निरबैर समन तें, निरसंका निरवाने।

    धरनी काम राम अपने तें, चरन कमल लपटाने॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए