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गुड़ु करि गिआनु धिआनु करि

guDu kari gi.aanu dhi.aanu kari

गुरु नानक

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गुरु नानक

गुड़ु करि गिआनु धिआनु करि

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    गुड़ु करि गिआनु धिआनु करि धावै करि करणी कसु पाईए।

    भाठी भवनु प्रेम का पोचा इतु रसि अमिउ चुआईऐ॥

    बाबा मनु मतवारो नाम रस पीवै सहज रंग रचि रहिआ।

    अहिनिसि बनी प्रेम लिव लागी सबदु अनाहद गहिआ॥ ॥रहाउ॥

    पूरा साचु पिआला सहजे तिसहि पीआए जा कउ नदरि करे।

    अंमृत का वापारी होवै किआ मदि छूछै भाउ धरे॥

    गुर की साखी अंमृत बाणी पीवत ही परवाणु भइआ।

    दर दरसन का प्रीतमु होवै मुकति बैकुंठे करै किआ॥

    सिफती रता सद बैरागी जूऐ जनमु हारै।

    कहु नानक सुणि भरथरि जोगी खीवा अंमृत धारै॥

    (परमात्मा के) ज्ञान को गुड़ बनाओ, ध्यान को महुआ और शुभ करणी को बबूल की छाल—(इन सब को एक में) मिला दो। श्रद्धा (भवन भवानी=श्रद्धा) को भट्टी और प्रेम को पोचा [पोचा=भाप रखने के लिए अर्क निकालने वाले पात्र के ऊपरी भाग में गीली मिट्टी और गीले कपड़े लपेट देते हैं] बनाओ; (इस प्रकार) लग गई है, अमृत रस (वाली मदिरा) चुवाओ।

    हे बाबा, नाम रूपी रस पीकर मन मतवाला हो जाता है और सहजावस्था के रंग में वह रंग जाता है। अहर्निश प्रेम की लिव (एकनिष्ठ धारणा) लग गई है, (और मन ने) अनाहत शब्द को ग्रहण कर लिया है।

    जिसके ऊपर (प्रभु) कृपा करता है, उसी को पूर्ण सत्य का प्याला सहज भाव से पिलाता है। (जो) अमृत (मदिरा) का व्यापारी होता है, (वह) तुच्छ (सांसारिक) मद से क्यों प्रेम (भाउ=भाव) करे?

    गुरु की शिक्षा अमृत-वाणी है, (उसके) पीते ही (शिष्य) प्रामाणिक हो जाता है। (जो व्यक्ति) (परमात्मा के) दरवाज़े पर (उसके) दर्शन का प्रेमी होता है वह मुक्ति और बेकुण्ड क्या करेगा?

    (जो परमात्मा की) स्तुति में रत है, वह सदैव वैरागी है, (वह जीवन रूपी) जुए की बाजी में (अपनी) जन्म नहीं हारताहै। नानक कहते हैं कि (हे) भरथरी, सुनो, (नाम रूपी) अमृत की धार में योगी मस्त (हो जाता है)।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 198)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

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