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धुन-धुन डालूँ अब मन को

dhun dhun Dalun ab man ko

संत शिवदयाल सिंह

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संत शिवदयाल सिंह

धुन-धुन डालूँ अब मन को

संत शिवदयाल सिंह

और अधिकसंत शिवदयाल सिंह

    धुन-धुन डालूँ अब मन को। मैं धुनिया सतगुरु चरनन को॥

    मन कपास सूरत कर रूई। काम बिनौले डाले खोई॥

    हुई साफ़ धुन की सुधि पाई। नाम धुना ले गगन चढ़ाई॥

    गाली मनसा गाले कर्मा। चरखा चला कते सब भर्मा॥

    सूत सुरत बारीक निकासा। कुकड़ी कर किया शब्द निवासा॥

    चित्त अटेरन टेर सुनाई। फेर-फेर कवलन पर लाई॥

    कवंल-कवंल लीला कहा गाऊँ। सुन-सुन धुन निज मन समझाऊँ॥

    सुरत रंगी करे शब्द बिलासा। तजी बासना बेची आसा॥

    निकट पिंड सुन पैठ समाई। सौदा पूरा किया बनाई॥

    राधास्वामी हुए दयाला। नफ़ा लिया खोला घट ताला॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 346)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : संत शिवदयाल
    • प्रकाशन : किताब महहल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

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