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भाई रे, राम कहाँ है मोहि बतावो

bhai re, ram kahan hai mohi batawo

रैदास

रैदास

भाई रे, राम कहाँ है मोहि बतावो

रैदास

भाई रे, राम कहाँ है मोहि बतावो।

सति राम ताकै निकट आयो॥टेक॥

राम कहत सब जगत भुलाना, सो यहु राम होई।

करम अकरम करुनामै केसौ, करता नांव सुं कोई॥

जा रामहि सब जग जानैं, भ्रम भूले रे भाई।

आप आप थैं कोई जानै, कहे कौन सूं जाई॥

सतत लोभ परिस जीय तन मन, गुन परसत नहिं जाई।

अलख नांव जाकै ठौर कतहूँ, क्यूं कह्यौ समुछाई॥

भणै रैदास उदास ताही थैं, कर्ता को है भाई।

केवल कर्ता ऐक सही करि, सति राम तिहिं ठांई॥

हे भाई! मुझे ज़रा यह बताओ कि जिस राम को तुम मानते हो, वह राम कहाँ है? सच्चे राम के तो तुम निकट तक भी नहीं आए। जिस राम को रटते हुए पूरा संसार भ्रमित हो रहा है, वह सच्चा राम नहीं है। जो राम अच्छे और बुरे कर्मों का ध्यान करके जीवों पर दया दिखाता है, वही करुणामय सच्चा है जिसे ‘नाम’ से पुकारा जाता है। जिसे लोग 'राम' कहकर जानते हैं, वे सब भ्रम में पड़े हुए हैं। लोग अपने−अपने तर्कों से ही संतुष्ट हो जाते हैं, किंतु सच्चाई कोई नहीं जानता; फिर कौन किसे जाकर समझाए? लोभ जिसके तन−मन का स्पर्श नहीं कर कसता, जो तीनों गुणों से अछूता है, जिसका कोई एक स्थान नहीं है, वही अलख नाम सच्चा राम है−यह बात कोई समझाकर क्यों नहीं कहता? रैदास कहते हैं कि सच्चे ईश्वर को जानने के कारण ही लोग दुःखी हैं। सृष्टिकर्ता तो केवल एक ही ईश्वर है, वही सच्चा राम है।

स्रोत :
  • पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 144)
  • संस्करण : 2011

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