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निस दिन सिमरूँ राम ही राम

nis din simrun ram hi ram

सैन भगत

अन्य

अन्य

सैन भगत

निस दिन सिमरूँ राम ही राम

सैन भगत

निस दिन सिमरूँ राम ही राम॥

राम सिमरताँ भव भय भागे, सीत लागे घाम।

भूख नी लागे तरस नी व्यापे, नहीं थकान विसराम॥

एक लगन एक मन लिवता, एक रटन एक नाम।

अंत समै गुरू दरसन होवे, काशी गुरू सुख धाम॥

गागनोन ती ओंकारेसर, नहीं लागो विसराम।

साधू संगत भली सुभागं, कासी कयो पयाम॥

पाँच बरस में कासी पौंच्या, गुरू आसरम सुख धाम।

अब नहीं छोड़ूँ अंत समै सुद, पाको करूँ मुकाम॥

सैन भगत सद्गुरु के दरसन, मिट्या सकल विसकाम।

निस दिन सिमरूँ, राम ही राम॥

मैं दिन-रात राम नाम का ही स्मरण करता हूँ। राम नाम के स्मरण से संसार के सभी भय दूर हो जाते हैं। भूख लगती है, प्यास लगती है। थकान का अनुभव होता है। एक ही धुन, एक ही लय की तल्लीनता रहती है कि अंत समय में सद्गुरू के दर्शन हो जाएँ। शीघ्र काशी सुखधाम पहुँच जाऊँ। गागरोन से चलकर ओंकारेश्वर पहुँचा। वहाँ मन नहीं लगा। विश्राम नहीं किया। सौभाग्य से साधु-संतों का संग मिल गया। उनके साथ काशी के लिए प्रस्थान कर दिया। काशी पहुँचने में पाँच बरस बीत गए। अन्ततः मैं गुरू आश्रम काशी सुखधाम पहुँच गया। अब मैं अंत समय तक काशी नहीं छोडूँगा। यह स्थाई मुकाम रखूँगा। सैन भगत कहते हैं—सद्गुरू के दर्शन से सभी विष कामनाएँ समाप्त हो गई। मन उज्ज्वल हो गया। मैं काशी में रहकर राम नाम का स्मरण करता हूँ।

स्रोत :
  • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 317)
  • संपादक : अशोेक मिश्र
  • रचनाकार : संत सैन भगत
  • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
  • संस्करण : 2013

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