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अवधू मन चंगा तो कठौती गंगा

avdhuu man cha.nga to kaThautii ga.nga

गोरखनाथ

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गोरखनाथ

अवधू मन चंगा तो कठौती गंगा

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और अधिकगोरखनाथ

    अवधू मन चंगा तो कठौती गंगा, बांध्या मेल्हा तौ जगत चेला।

    बदंत गोरख सत सरूप, तत विचारै तै रेख रूप॥

    हे अवधू! यदि मन शुद्ध है तो कठौती का जल भी गंगाजल के समान पवित्र है। मन को बाँध कर रखने से संसार शिष्य बन जाता है। गोरख सत्य स्वरूप ब्रह्म के विषय में कहता है—यदि तत्त्व विचार करें तो ज्ञात होता है कि मन की कोई रूपरेखा नहीं, वह निराकार है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री गोरख गीत (पृष्ठ 153)
    • रचनाकार : गोरखनाथ
    • प्रकाशन : laxmi prakashan

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