विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक' की कहानियाँ
ताई
(एक) “ताऊजी, हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे?” कहता हुआ एक पंचवर्षीय बालक बाबू रामजीदास की ओर दौड़ा। बाबू साहब ने दोंनो बाँहें फैलाकर कहा—“हाँ बेटा, ला देंगे।” उनके इतना कहते-कहते बालक उनके निकट आ गया। उन्होंने बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुख
इक्केवाला
स्टेशन के बाहर मैंने अपने साथी मनोहरलाल से कहा—कोई इक्का मिल जाए तो अच्छा है—'दस मील का रास्ता है।' मनोहरलाल बोले—'आइए, इक्के बहुत हैं। उस तरफ़ खड़े होते हैं।' हम दोनों चले। लगभग दो सौ गज़ चलने के पश्चात देखा तो सामने एक बड़े वृक्ष के नीचे तीन-चार इक्के
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere