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उदयराज जती

रीतिकाल के नीतिकवि।

रीतिकाल के नीतिकवि।

उदयराज जती के दोहे

स्वारथ प्यारो कवि उदै, कहै बड़े सो साँच।

जल लेवा के कारणे, नमत कूप कूँ चाँच॥

अति करौ कहि कवि उदै, अति कर रावन कंस।

आप गयौ जानत सकल, गयौ संपूरन बंस॥

आछा खावै सुख सुवै, आछा पहिरे सोइ।

अति आछो रहणी रहै, मरै बूढ़ा होइ॥

उदै राज खेलौ हँसौ, मनिखा देही सार।

इह सगपण जिवतन मिलण, बहुरि दूजी बार॥

सज्जन मिलण समान कछु, उदै दूजी बात।

सेत पीत चूनौ हरद, मिलत लाल ह्वै जात॥

उदै सीख कहि क्यों दिए, सीख दिया दुख होइ।

अपनी करनी चालणी, बुरी देखै कोइ॥

सूर सुख्ख अरु दुख्ख को, दोउ गिणो विचार।

जेतौ जुग भइँ चाँदणों, ते तौ पख अंधार॥

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