सरमद काशानी के उद्धरण

ऐ जाहिद! मैं शाहों का शाह हूँ-तेरी तरह नंगा कंजूस नहीं हूँ, मूर्तिपूजक और काफ़िर हूँ, ईमान वाले मुसलमानों से मैं अलग हूँ, यों मैं कभी-कभी मस्जिद की ओर भी जा निकलता हूँ, पर मुसलमान नहीं हूँ।
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बहुत दिन हो जाने से मंसूर का क़िस्सा पुराना पड़ गया है, मैं सूली पर चढ़कर उसे फिर ताज़ा कर रहा हूँ, दार और रसन का जलवा फिर चमक कर दिखाता हूँ।
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