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नरपति नाल्ह

अजमेर के राजा विग्रहराज चतुर्थ के राजकवि। वीरगीत के रूप में सबसे पहली कृति 'बीसलदेव रासो' के रचयिता।

अजमेर के राजा विग्रहराज चतुर्थ के राजकवि। वीरगीत के रूप में सबसे पहली कृति 'बीसलदेव रासो' के रचयिता।

नरपति नाल्ह के उद्धरण

हे स्वामी! तुमने घी का व्यापार तो किया, किंतु खाया तेल ही है।

पुरुष के समान निर्गुणी संसार में अन्य नहीं होता।

हे स्वामी! प्रवास के लिए कौन कहता है? वह जिसके घर में स्त्री नहीं होती या जिसके घर में कुल्हड़ में नमक तक नहीं होता, या जिसके घर में अकुलीन स्त्री कलह करती है, या जिसको ऋण से दबा होने से घर नहीं सुहाता, या जो योगी होकर घर से निकल पड़ता है, या जो अपना सा मुँह लेकर अलग (प्रवास) को जाता है।

अर्थ और द्रव्य तो धरती में गड़ा रह जाता है, जो इसका संचय करता है, यह उसी को खाता है।

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