महावीर प्रसाद द्विवेदी का आलोचनात्मक लेखन
कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता
कवि स्वभाव से ही उच्छृंखल होते हैं। वे जिस तरफ़ झुक गए, झुक गए। जी में आया तो राई का पर्वत कर दिया; जी में आया तो हिमालय की तरफ़ भी आँख उठाकर न देखा। यह उच्छृंखलता या उदासीनता सर्व साधारण कवियों में तो देखी ही जाती है, आदि कवि तक इससे नहीं बचे। क्रौंच
'बिहारी सतसई' के पहले दोहे की टीका
उस दिन कानपुर के एक छापेख़ाने में बिहारी की सतसई का एक नया संस्करण देखने को दिला। यह संस्करण हिंदी साहित्य में प्रावीण्य या प्राप्त करने के इच्छुक छात्रों के उपकार के लिए सटीक प्रकाशित हुआ है। इसमें पहले दोहे के अर्थ की असुंदरता देखकर दुःख हुआ था? क्योंकि
मतिराम ग्रंथावली
संपादक—कृष्ण बिहारी मिश्र बी० ए०, एल-एल० बी०, प्रकाशक—गंगा पुस्तक माना कार्यालय, लखनऊ। पृष्ठ संख्या-264 + 244; मूल्य—सजिल्द 3 रु०, अजिल्द 20 यह ढाई रुपए मूल्यवाली 'अजिल्द' ग्रंथावली मेरे पास 'समालोचनार्थ' भेजी गई है। परंतु मैं कवि मतिराम की कविता
कविवर लछीराम
अयोध्या के प्रसिद्ध कवि कविवर लछीराम का शरीरांत हो गया। भादों बदी 11, मंगल संवत् 1961 को सरयू के किनारे, अयोध्या में, उन्होंने इस लोक से प्रस्थान कर दिया। लछीरामजी ब्रह्मभट्ट थे। उनकी कविता पर प्रसन्न होकर अयोध्या-नरेश, महाराजा मानसिंह, ने उनको अपने
उपन्यास-रहस्य
आजकल हिंदी साहित्य में उपन्यास-नामधारिणी पुस्तकों की भरमार हो रही है। इन पुस्तकों में से प्रायः पचानवे फीसदी पुस्तकें उपन्यास कदापि नहीं और चाहे जो कुछ हों। उपन्यासों और क़िस्से कहानी की पुस्तकों की चाह होने के कारण अधिकारी और अनधिकारी सभी लेखक 'अव्यापारेषु
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere