माधवराव सप्रे की कहानियाँ
एक टोकरी-भर मिट्टी
किसी श्रीमान ज़मींदार के महल के पास एक ग़रीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। ज़मींदार साहब को अपने महल का अहाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई ज़माने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र
सुभाषित रत्न
एक दिन एक विद्वान् ब्राह्मण किसी धनवान मनुष्य के पास गया और कहने लगा—“महाराज, मैं कुटुंबवत्सल पंडित हूँ। आजकल भयंकर कराल रूपी दुष्काल ने चारों ओर हाहाकार मचा दिया है। अन्न महँगा हो जाने के कारण अपना चरितार्थ नहीं चला सकता। आप श्रीमान हैं। परमेश्वर ने
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere