काशीनाथ सिंह की कहानियाँ
तीन काल-कथा
अकाल यह वाक़या दुद्धी तहसील के एक परिवार का है। पिछले रोज़ चार दिनों से ग़ायब मर्द पिनपिनाया हुआ घर आता है और दरवाज़े से आवाज़ देता है। अंदर से पैर घसीटती हुई उसकी औरत निकलती है। मर्द अपनी धोती की मुरीं से दस रुपए का एक मुड़ा-तुड़ा नोट निकालता है और
अपना रास्ता लो बाबा
जिस समय देवनाथ मेवालाल की पान की दुकान पर ‘विल्स फ़िल्टर्ड’ का पैकेट ख़रीद रहे थे उसी समय बग़लवाली दुकान से एक आवाज़ सुनाई पड़ी जो उस गली का नाम पूछ रही थी, जिसमें वे रहते थे। हालाँकि उस गली में अकेले वही नहीं रहते थे, सैंकड़ों लोग रहते थे, पूछने
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere