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जॉर्ज सांतायाना

1863 - 1952 | मैड्रिड

जॉर्ज सांतायाना की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

किसी भाषा विशेष को बिना बोले भाषा बोलने का प्रयास उतना ही निरर्थक है जितना कोई धर्म रखने का प्रयत्न करना जो कोई धर्म-संप्रदाय होगा।

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इंग्लैंड वैयक्तिकता, सनक, अनधिकृतमत असंगतियों, शौक़ों और मज़ाक़ों का स्वर्ग है।

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