बाल अली की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 50
दंपति प्रेम पयोधि में, जो दृग देत सुभाय।
सुधि बुधि सब बिसरत तहाँ, रहे सु विस्मै पाय॥
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हिलि मिलि झूलत डोल दोउ, अलि हिय हरने लाल।
लसी युगल गल एक ही, सुसम कुसुम मय माल॥
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नेह सरोवर कुँवर दोउ, रहे फूलि नव कंज।
अनुरागी अलि अलिन के, लपटे लोचन मंजु॥
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नील पीत छबि सो परे, पहिरे बसन सुरंग।
जनु दंपति यह रूप ह्वै, परसत प्यारे अंग॥
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यद्यपि दंपति परसपर, सदा प्रेम रस लीन।
रहे अपन पौ हारि कै, पै पिय अधिक अधीन॥
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