Ambikadatt Vyas's Photo'

अंबिकादत्त व्यास

1858 - 1900 | जयपुर, राजस्थान

'भारतेंदु मंडल' के कवियों में से एक। कविता की भाषा और शिल्प रीतिकालीन। 'काशी कवितावर्धिनी सभा’ द्वारा 'सुकवि' की उपाधि से विभूषित।

'भारतेंदु मंडल' के कवियों में से एक। कविता की भाषा और शिल्प रीतिकालीन। 'काशी कवितावर्धिनी सभा’ द्वारा 'सुकवि' की उपाधि से विभूषित।

अंबिकादत्त व्यास के दोहे

गुंजा री तू धन्य है, बसत तेरे मुख स्याम।

यातें उर लाये रहत, हरि तोको बस जाम॥

मोर सदा पिउ-पिउ करत, नाचत लखि घनश्याम।

यासों ताकी पाँखहूँ, सिर धारी घनश्याम॥

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