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सीख देवै समझावै सुरनर

seekh dewai samjhawai surnar

जसनाथ

अन्य

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जसनाथ

सीख देवै समझावै सुरनर

जसनाथ

सीख देवै समझावै सुरनर, पड़ गोरख रै पाये।

हिन्दू रूपी देव भणीजै, मुसळमान खुदाये।

च्यार जुगां में भक्ति बडी है, ऐसी गुरु फरमाये।

राव जहूठल मेळै मिलिया, लाखण बाण चढ़ाये।

कोड़ तेतीसा मेळो हुयसी, वैकुंठ वास वसाये।

[कोड़ निन्नाणवै टोटै दीनी, किया जंवरै सारूं साये]।

अड़सठ देवी चालै बांवै, जोगण चकर चलाए।

लेय विसंनर होम करेसी, कांनड़ वचन सुणाये।

कांनड़ बाळो चिळतां खेलै, आचड़ कोट रचाये।

भाज सकै तो भाज काळंगा, लंघ समंद री खाये।

अबकै भाज्यां जाण देसी, खेलत ईसर डाये।

खोट करै वै नासै भाजै, साचां वळवळ आये।

कांन कळा निकळंकी बाबो, जिणनै मान बडाये।

अबची वाचा सो गुरु सिंवरो, एक निरंजण ध्याये।

गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणाये।

स्रोत :
  • पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 189)
  • संपादक : सूर्य शंकर पारेक
  • रचनाकार : जसनाथ
  • प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
  • संस्करण : 1996

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