Font by Mehr Nastaliq Web

चंचल मन कबजे नहीं आवे

chanchal man kabje nahin aawe

सैन भगत

सैन भगत

चंचल मन कबजे नहीं आवे

सैन भगत

चंचल मन कबजे नहीं आवे।

मन माया की मदिरा पीवे, बार-बार मदकावे।

झूमें झुके झकोरा खावे, बेमतलब बिलमावे॥

सुरत गँवावे समत खोवे, गेल डगर ठुकरावे।

मनमत होयो बेगत्यो वै, भमरा ने भरमावे॥

सूकर स्वान गदेड़ा जेसो, गलियाँ में घुमरावे।

चंचल चित्त कबजे नहीं आवे॥

दुरमत दुगन दुस्ट संग होई, मगन मोज मरजादा खोई॥

कड़वी बेल काकड़ी बोई, विस बोयाँ ती विस फल होई॥

करनी कर पाछे पछतावे,

चंचल चित कबजे नहीं आवे॥

चार चुमेरां भटके-अटके, ठाँव-ठोर नी पावे।

अछतावे-पछतावे मूरख, पड्यो पछीटा खावे॥

बिलख-बिलख सिर धुने बावलो, धीरज कूण बँधावे।

पास-पड़ोसी समधी साथी, कोई नहीं वतरावे॥

सैन भगत कोई पुण्य उग्यो जद, सद्गुरु शरणा आवे।

एक झाप सद्गुरु की पड़याँ, साध चरित बण जावे॥

यह चंचल मन वश में नहीं आता है। यह मन माया की मदिरा पीकर बार-बार मदमस्त हो उठता है। कभी झूमता है, कभी झुकता है, कभी डगमगाता है। अकारण ही भ्रम का वातावरण बनाता है। सुरति को गँवाकर, सद्गति को खोकर मार्ग में ठोकरें खाता फिरता है। मदमस्त मन होकर दुर्गति को प्राप्त हो अपने विवेक को भटकाता रहता है। यह सूअर, श्वान और गदहे की तरह गलियों में घूमकर अभद्रता और अमर्यादा का व्यवहार करता है। इसकी यह गति कुसंग के कारण हुई है। इसी कारण मौज में मदमस्त होकर यह अमर्यादित हो गया है। इसने कड़वे बीज वाली ककड़ी बोई है। विष वपन करने से विष ही तो उगेगा। अब यह अपनी करनी पर पछता रहा है। यह चारों ओर भटकता फिर रहा है, इसे कहीं भी ठाँव-ठौर नहीं मिल रहा। यह मूर्ख अब पश्चाताप में जल रहा है और तड़प कर व्याकुल हो रहा है। इसके सभी मित्र, पड़ोसी, समधी, साथी इससे नाता तोड़ चुके हैं। सैन कहते हैं—इसका कोई पुण्य उदय हो गया, तब इसे गुरूशरण प्राप्त हो गई। सद्गुरू ने आशीर्वाद की एक थपकी पीठ पर लगा दी। सद्गुरू की एक थपकी सारे कलुष दूर कर साधु स्वभाव प्रदान कर देती है।

स्रोत :
  • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 299)
  • संपादक : अशोेक मिश्र
  • रचनाकार : संत सैन भगत
  • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
  • संस्करण : 2013

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY