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सदा ही नांव धणी से लीजे

sada hi nanw dhani se lije

जसनाथ

अन्य

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जसनाथ

सदा ही नांव धणी से लीजे

जसनाथ

सदा ही नांव धणी रो लीजे, किसड़ी वार सुवारो।

नांव लियां भो पातक भाजै (झड़सी), सो कांई नांव विसारो।

भांजै घड़ै सुंवारै सायब, भांज घड़ै भुंय सारो।

तालां हुंता कोट चिणावै, कोटां ताल उसारो।

रावण री मत कांय नर हालो, लंक तणो छत धारो।

उण रै जम जरवाणों कूवै बैतो, जळ बंधियो फुंकारो।

विसंनर गुरु तो गाभा धोतो, इंद बणतो पणिहारो।

सूरज बाबो तपै रसोड़ै, दैतो पौन बुहारो।

वेह माता उण रै कोद्युं दळती, कूवै मोत उसारो।

आंरा मरण किसो पिसतावो, सोही गयो निरधारो

माथै आंख हिये सुध नाहीं, सब ही घोर अंधारो।

पांचा बळदां नाथ घलावो, इण घट भीतर चारो।

वरण वरो जे तरण तिरो थे, हिंडोलै हिलकारो

जोड़ तळाई किन्या संकळपो, सुरगां जावणहारो।

गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ(जी) असली ज्ञान विचारो।

स्रोत :
  • पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 190)
  • संपादक : सूर्य शंकर पारेक
  • रचनाकार : जसनाथ
  • प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
  • संस्करण : 1996

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