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माई हों गिरिधर गुण गाउं

mai hon girdhar gun gaun

कुंभनदास

अन्य

अन्य

कुंभनदास

माई हों गिरिधर गुण गाउं

कुंभनदास

और अधिककुंभनदास

    माई हों गिरिधर गुण गाउं।

    मेरो तो यह व्रत है निरंतर और रुचि उपजाऊं॥

    खेलन आंगन आओ लाड़ले नेकहु दरसन पाउं।

    कुंभनदास हिलग के कारन लालचि मन ललचाउं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 77)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : कुम्भनदास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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