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मैं गिरधर के घर जाऊँ

main girdhar ke ghar jaun

मीरा

अन्य

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मीरा

मैं गिरधर के घर जाऊँ

मीरा

और अधिकमीरा

    मैं गिरधर के घर जाऊँ।

    गिरधर म्हाँरो साँचो प्रीतम

    देखत रूप लुभाऊँ॥

    रैण पड़ै तब ही उठ जाऊँ

    भोर भये उठ आऊँ।

    रैण दिना वा के संग खेलूँ

    ज्यूँ त्यूँ ताही रिझाऊँ॥

    जो पहिरावै सोई पहिरूँ

    जो दे सोई खाऊँ।

    मेरी उण की प्रीत पुराणी

    उण बिन पल रहाऊँ॥

    जहाँ बैठावें तितही बैठूँ

    बेचै तो बिक जाऊँ।

    मीरा के प्रभु गिरधर नागर

    बार-बार बलि जाऊँ॥

    मैं गिरधर के घर जाती हूँ। गिरधर मेरा सच्चा प्रीतम है। जिसका हुस्न देखकर मेरा दिल ख़ुश हो जाता है। रात होते ही मैं उठकर चली जाती हूँ। रात-दिन उसके साथ खेलती हूँ और हर मुमकिन तरीक़े से उसे रिझाती हूँ। जो वह पहनाता है वही पहनती हूँ। जो देता है वही खाती हूँ, मेरी उनकी मुहब्बत बहुत पुरानी है, उसके बग़ैर एक पल नहीं रह सकती। वह जहाँ बिठाएगा वहीं बैठ जाऊँगी और अगर बेचेगा तो बिक जाऊँगी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, उन पर क़ुर्बान जाऊँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मीरा वाणी (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : मीरा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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