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कोकिल अब क्यों मौन गही

kokil ab kyon maun gahi

बालमुकुंद गुप्त

अन्य

अन्य

बालमुकुंद गुप्त

कोकिल अब क्यों मौन गही

बालमुकुंद गुप्त

कोकिल अब क्यों मौन गही?

बहु विधि फूल विपिन में फूले मंद समीर बही॥

बौराए बहु आम मंजरिन तीखी सान लही।

फूल उठे बन उपबन सिगरे उमगी परत मही॥

अपने हाथ बहुरि कुसुमायुध फूल कमान गही।

चटक चाँदनी निर्मल चंदा विरहिन अधिक दही॥

मत्त भई मलयज संग डोलत सौरभ अति उलही।

नाचत मोर कीर बहु गावत चाचर होय रही॥

फूलन-फूलन डोलत अलिंगन करते चित्तचही।

फूली लता लपटि तरु से कुछ सुख की बात कही॥

तू कैसे चुप साधि रह्यो प्रिय टुक तो बोल सही।

शोभा नव वसना की बनि के गई नव दुलही।

पंचम राग सुना अब प्यारे सुख को सार यही।

जौलों रहे वसंत रहेगो इक तेरो जस ही॥

स्रोत :
  • पुस्तक : गुप्त-निबंधावली (पृष्ठ 662)
  • संपादक : झाबरमल्ल शर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी
  • रचनाकार : बालमुकुंद गुप्त
  • प्रकाशन : गुप्त-स्मारक ग्रंथ प्रकाशन-समिति, कलकत्ता
  • संस्करण : 1950

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